धनबाद(DHANBAD): आज की तारीख में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन झारखंड के सबसे ताकतवर नेता की छवि अपने पाले में कर ली है. अब तो वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष भी बन गए है. अब केवल सरकार ही नहीं, बल्कि झारखंड मुक्ति मोर्चा की बागडोर भी हेमंत सोरेन के हाथ में है. पार्टी को विस्तार देने, उसे चलाने के लिए अब उन्हें किसी की अनुमति की जरूरत नहीं होगी. जरूरत के हिसाब से वह निर्णय ले सकेंगे. झामुमो का इतिहास भी सीधे धनबाद से जुड़ा हुआ है. विनोद बाबू ,निर्मल महतो ,शिबू सोरेन के बाद अब हेमंत सोरेन पार्टी के अध्यक्ष बन गए है. 4 फरवरी 1973 को धनबाद के गोल्फ मैदान में विनोद बिहारी महतो, एके राय और शिबू सोरेन ने मिलकर झामुमो की स्थापना की थी. मकसद था अलग राज्य की लड़ाई लड़ना.
विनोद बाबू झारखंड मुक्ति मोर्चा के पहले अध्यक्ष बने थे
झामुमो के गठन के दिन ही विनोद बाबू पार्टी के पहले अध्यक्ष चुने गए. शिबू सोरेन उस वक्त महासचिव बने थे. उसके बाद 1987 में शिबू सोरेन पहली बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष बने. लेकिन उसके कई सालों बाद अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए हेमंत सोरेन पहली बार पार्टी के अध्यक्ष चुने गए है. पार्टी के गठन के बाद हेमंत सोरेन शायद 14 चौथे अध्यक्ष है. जिनकी ताजपोशी हुई है. उनके पिता और पार्टी के संस्थापक शिबू सोरेन अब संरक्षक की भूमिका में आ गए है. पार्टी को जानने वाले बताते हैं कि 1973 से लेकर 1984 तक विनोद बिहारी महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष रहे. 1984 में परिस्थितिया बदली तो शिबू सोरेन ने निर्मल महतो को अध्यक्ष बना दिया. निर्मल महतो की हत्या के बाद 1987 में शिबू सोरेन ने पार्टी की कमान संभाली और करीब 38 वर्षों तक अध्यक्ष रहे. इस बीच झामुमो में टूट भी हुई. शिबू सोरेन अधिक उम्र की वजह से अब सक्रिय नहीं रह पा रहे है. इस वजह से हेमंत सोरेन ही अब पार्टी की बागडोर संभालेंगे. झामुमो का इतिहास धनबाद से जुड़ा हुआ है.
शिबू सोरेन ने पहली बार चुनाव धनबाद के टुंडी से लड़ा था
शिबू सोरेन पहली बार चुनाव धनबाद के टुंडी से लड़ा ,लेकिन पूर्व मंत्री सत्यनारायण दुदानी के हाथों वह पराजित हो गए. इस हार ने शिबू सोरेन को इतना विचलित किया कि वह टुंडी छोड़कर दुमका चले गए और फिर दुमका में ही अपनी राजनीति कद का विस्तार किया. वहीं से सांसद चुने गए. लेकिन शिबू सोरेन अलग झारखंड राज्य की लड़ाई टुंडी के जंगलों से शुरू की थी. टुंडी के मनियाडीह में शिबू आश्रम आज भी इस आंदोलन का गवाह है. वह अपने आंदोलन में साथियों के साथ यहां बैठक करते थे. टुंडी से शुरू हुई अलग झारखंड राज्य की लड़ाई अभिवाजित बिहार के समय पूरे संथाल -कोल्हान क्षेत्र में फैल गई थी. 80 के दशक के बाद झामुमो ने संसदीय व्यवस्था में भी अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी. एकीकृत बिहार में झामुमो ने अपनी राजनीतिक धमक शिबू सोरेन के नेतृत्व में बनाए रखी.
लंबी लड़ाई के बाद 15 नवंबर 2000 को अलग झारखंड राज्य बना
लंबी लड़ाई के बाद 15 नवंबर 2000 को अलग झारखंड राज्य की स्थापना हुई. 2019 में भी हेमंत सोरेन ने अपनी चतुराई का परिचय देते हुए सरकार बनाई, तो 2024 में उनके गठबंधन को तो प्रचंड बहुमत मिला ही, झारखंड मुक्ति मोर्चा भी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई. यह अलग बात है कि 2024 के पहले इतनी बड़ी संख्या में झारखंड मुक्ति मोर्चा को सीट नहीं आई थी. 2024 के चुनाव की सफलता ने झारखंड मुक्ति मोर्चा को अन्य राज्यों में भी विस्तार के लिए प्रेरित किया है. और अब हो सकता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा अन्य राज्यों में भी अपना विस्तार करे. इसी साल बिहार और अगले साल बंगाल के चुनाव में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा निश्चित रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज करेगा. देखना होगा कि चौथे अध्यक्ष के रूप में हेमंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा को और कितना प्रगति के पथ पर ले जाने में सफल होते है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
Recent Comments