गिरिडीह(GIRIDIH):गरीबों को केंद्र सरकार द्वारा एफसीआई के माध्यम से फ्री चावल के साथ अन्य सामग्री हर महीने उपलब्ध करवाया जाता है, लेकिन इन गरीबों का हक मारकर कालाबाजारी करते हुए कई अनाज माफिया मालामाल हो रहे हैं. इस तरह का गौरख धंधा केवल गिरिडीह ही नहीं बल्कि झारखंड के अलग-अलग जिलों में फल फूल रहा है. सूत्रों की मानें तो गरीबों को मिलनेवाले चावल पीडीएस दुकानदारों द्वारा एक-एक किलो हर महीने कम दिया जाता है और इसी चावल को PDS दुकानदारों द्वारा चावल माफियाओं के हाथ बोरा बदलकर बेच दिया जाता है और संबंधित अनाज माफिया द्वारा इस चावल को बंगाल के चावल मिलों में बेच दिया जाता है. जहां चावल को पॉलिश कर पुनः बाजार में पैकेजिंग कर भेज दिया जाता है जिससे अनाज माफिया तथा चावल मिल मालिकों को अच्छी कमाई हो जाती है.

पीडीएस अनाज की कालाबाजारी कर भेजा जाता है बंगाल

प्रशासन द्वारा लगातार ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है लेकिन इस प्रकार के करनामे रोकने का नाम नहीं ले रहा है. ताजा मामला गिरिडीह जिले के खोरी महुआ अनुमंडल के कोदम्बरी का है जहां बीती रात खोरीमहुआ अनुमंडल पदाधिकारी अभिषेक रंजन सहित प्रखंड विकास पदाधिकारी एवं मार्केटिंग ऑफिसर ने एक गोदाम में छापेमारी किया. जहां दर्जनों बोरा चावल पाया गया तथा लगभग डेढ़ सौ बड़ा चावल लोडेड ट्रक जो गोदाम के बाहर खड़ा था को जब्त करते हुए गोदाम सील कर दिया गया.आपको बताये कि यह ट्रक भी बंगाल नंबर की है जिससे संदेह है कि इस गोदाम से चावल बंगाल भेजा जाता है. बताया जाता है कि गोदाम में  डेढ़ सौ बोरा चावल के साथ भूसी एवं धान के बोरे भी पाए गए  है.

प्रशासन ने छापेमारी कर सील किया गोदाम

इस संबंध में खोरी महुआ मार्केटिंग ऑफिसर ने बताया कि अनुमंडल पदाधिकारी द्वारा इस गोदाम को सील किया गया है तथा चावल सरकारी एजेंसी फूड कॉरपोरेशन आफ इंडिया का है या नहीं अथवा इतना चावल इस गोदाम के साथ-साथ ट्रक में कहां से आया सारे तथ्यों की जांच किया जाएगा. अगर अनाज का वास्तविक बिल्टी गोदाम मालिक द्वारा प्रशासन के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो प्रशासनिक कार्रवाई से गोदाम मालिक बच जाएगा नहीं तो प्रशासनिक गाज गिरना सुनिश्चित है. बताते चलें कि पूर्व में भी इस गोदाम में दो-दो बार तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी द्वारा छापेमारी की गई है. बावजूद कोई फर्क नहीं पड़ा है.अब देखना होगा कि प्रशासनिक कार्रवाई से कालाबाजारी अथवा गरीबों के अनाज को बेचने वाले लोगों पर क्या फर्क पड़ता है.                        

रिपोर्ट-दिनेश रजक