पाकुड़(PAKUR):जब पूरे पाकुड़ जिले में बाल श्रमिकों से काम करवाना आम बात बन चुकी है, ऐसे में हिरणपुर स्थित जाया ढाबा के मालिक रामु भगत ने एक छोटा-सा लेकिन गहरा संदेश देकर समाज को आईना दिखा दिया है.उनके ढाबे की दीवार पर सादा सा एक पोस्टर चिपका है.मेरे दुकान / प्रतिष्ठान में कोई भी बाल श्रमिक नियोजित नहीं है.यह वाक्य जितना सरल है, उतना ही समाज के लिए एक बड़ी चेतावनी भी.
कानूनी रूप से अपराध है बाल श्रम
रामु भगत कहते है बाल श्रमिक कराना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि यह कानूनन अपराध भी है.बच्चों का स्थान स्कूल है, काम की जगह नहीं.उनकी यह सोच बताती है कि बदलाव केवल नीतियों से नहीं, नीयत से आता है.जहाँ एक ओर पाकुड़ जिले की चाय की दुकानें, रेस्टोरेंट्स और किराना स्टोर जैसे छोटे-छोटे प्रतिष्ठानों में धड़ल्ले से 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम लिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर जाया ढाबा जैसे उदाहरण उम्मीद की किरण बनकर सामने आ रहे है.
एक अच्छी सोच बदल सकती है समाज
बाल श्रम अधिनियम, 1986 के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक व्यवसायों में नियोजित करना गैरकानूनी है. इसके बावजूद पाकुड़ जिले में नई कॉलोनियों से लेकर बाजारों तक, नन्हें हाथों में किताबों की जगह थाली, झाड़ू और ईंटें पकड़ी जा रही है.हज़ारों बच्चे, जो अपने अधिकारों से अनजान हैं, दो वक्त की रोटी के लिए अपने बचपन की कीमत चुका रहे है.इस दर्दनाक सच्चाई के बीच रामु भगत का यह कदम न केवल सराहनीय है, बल्कि यह हर दुकानदार और व्यवसायी के लिए एक प्रेरणा भी है.
बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए केवल कानून नहीं, बल्कि समाज की सजगता भी जरूरी है
समाज तब बदलेगा जब हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझेगा. बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए केवल कानून नहीं, बल्कि समाज की सजगता भी जरूरी है और जाया ढाबा इसका जीता-जागता उदाहरण बन चुका है.अगर हर ढाबा, हर दुकान, हर गली ऐसा ही एक पोस्टर लगा दे.तो शायद एक दिन कोई बच्चा मजदूरी नहीं, सिर्फ स्कूल जाएगा.
रिपोर्ट-नंदकिशोर मंडल
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