TNP DESK: अगर आप बिहार के मधुबनी जिले की यात्रा पर जा रहे हैं और मधुबनी पेंटिंग (मिथिला कला) के शौकीन हैं, तो इन जगहों पर जरूर जाए, जहां इस पारंपरिक कला के इतिहास, विशेषताओं के बारे में जानने और देखने को मिलेगा .
मधुबनी पेंटिंग, मिथिला का दिल
बिहार का मधुबनी पेंटिंग, जिसे लोग मिथिला पेंटिंग के नाम से भी जानते है.बता दे बिहार के मिथिला पेंटिंग मिथिलांचल का एक पारंपरिक लोक कला है.चलिए इसके बारे में शुरुआत से बताते है, मिथिला पेंटिंग की शुरुआत राजा जनक के समय हुई थी, जब राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता जी के शादी के समय कलाकारों से सजावट के लिए दीवारों को सजाने के लिए कहा था.खास बात यह है कि उस समय मिथिलांचल की महिलाएं अपने घरों के दीवार को सजाने के लिए मिथिला पेंटिंग बनाती थी. और इसमें महिलाएं प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करके सुंदर-सुंदर चित्र बनाती थी. लेकिन अब समय के साथ यह कला कागज कपड़ों और कैनवास पर भी बनाया जाने लगा है .
मधुबनी पेंटिंग की विशेषताएं
इस पेंटिंग में प्राकृतिक रंगों का इस्तमाल किया जाता है जैसे हल्दी, नीम, पलाश के फूल, दूध, बबूल की गोंद आदि से रंग तैयार किए जाते हैं.साथ ये भी बता दे कि मिथिला पेंटिंग में खास कर रामायण, महाभारत, देवी-देवता, प्रकृति, विवाह आदि के चित्र बनाए जाते है.वही इस ढंग भरणी, कचनी, तांत्रिक, गोदना, कोहबर आदि होता है.इसे बनने के बांस की कलम, माचिस की तीली, उंगलियाँ आदि के मदद से बनाया जाता है .
पेंटिंग देखने के लिए यह जगह बेस्ट
अगर आप भी मधुबनी पेंटिंग के दीवाने है तो आपको एक बार जरूर जितवारपुर गाँव जाना चाहिए,यहाँ की महिलाएं मधुबनी पेंटिंग में पारंगत हैं और कई पुरस्कार जीत चुकी हैं.इसके बाद रांटी गाँव जहां के कलाकारों को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है उनके कलाकारी के लिए .यह सभी सम्मति कलाकारों का निवास स्थान.बेनिपट्टी का वैदेही कला केंद्र जो मधुबनी पेंटिंग के संरक्षण और प्रचार-प्रसार का प्रमुख केंद्र है. इसके अलावा दरभंगा का कलाकृति कला केंद्र जहां मिथिला कला के प्रशिक्षण और प्रदर्शन का सबसे अच्छा जगह है.
सम्मान और पहचान
ऐसे तो मधुबनी पेंटिंग राजा जनक के समय से प्रसिद्धि है, लेकिन मधुबनी पेंटिंग को 1969 में पहली बार राज्य स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई थी.इसके बाद कई कलाकारों को पद्मश्री और राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जहां जगदंबा देवी को पद्मश्री से 1975 में , सीता देवी को पद्मश्री, 1981 में, गंगा देवी को पद्मश्री, 1984 में, महासुंदरी देवी को पद्मश्री, 2011 में सम्मानित किया गया है.वही अब यह इंटरनेशनल लेवल पर पहचान बना चुकी है .बता दे मधुबनी पेंटिंग न केवल बिहार की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि यह महिलाओं के सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी बन चुकी .यदि आप भी मधुबनी पेंटिंग के दीवाने हैं, तो एक बार मधुबनी की यात्रा जरूर करे.
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