रांची (RANCHI): उम्र 17 साल. क्लास 12 वीं. स्कूल गुरुनानक. नाम मोहम्मद हमज़ा रहमान. घर का पता नाज़िर अली लेन, चर्च रोड, रांची. इस बच्चे ने उस धारणा को पराजित कर दिया है कि किसी बड़े काम के लिए बड़ी डिग्री या बड़ी उम्र का होना लाज़मी होता है. चलिये बताते हैं, प्रतिभा की नई कथा. इस लड़के के हौसले को देख मंजूर हाशमी का शेर याद आता है: यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है,हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है.
बचपन से रहा हमज़ा नटखट और खोजी
ग्रेजुएट गृहणी मां और बिजनेस मेन पिता खलील उल रहमान का यह लाडला जब महज़ चार साल का था, तब से ही अपने खिलौने को खोलकर दोबारा फिट कर देता. कभी अलग-अलग पार्ट-पुरजे से कुछ नई चीज बना देता. हालांकि पापा की डांट भी मिलती, पर मां की स्नेहिल थपक उसके हौसले बढ़ा देती. आयु के बढ़ने के साथ इलेक्ट्रॉनिक गजट में उसकी रुचि बढ़ती गई. अब वह दिल्ली पब्लिक स्कूल में पढ़ने लगा था. उसकी बड़ी बहन फरहीन रहमान बीआईटी मेसरा में सिविल इंजीनियरिंग करने लगी थी. जब फरहीन ने 2017 में गोल्ड मेडल हासिल किया तो हमज़ा की प्रेरणा को मानो पंख लग गए. डीपीएस से मैट्रिक करने के बाद वो जब तक गुरुनानक स्कूल पहुंच चुके थे.
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छह माह में कर दिया लड़के ने कमाल
हमज़ा ने छह माह पहले एक रोबोट बनाने का प्लान किया. बड़ी बहन ने मदद की. घर वालों का साथ मिला. और आखिर उन्होंने रोबोट तैयार कर लिया. इसकी डिजाइन, प्लानिंग और प्रोग्रामिंग में हमज़ा को दो महीने लगे. इसका नाम उन्होंने टाइगर रखा है. अब बताते हैं कि इनका टाइगर क्या-क्या कर सकता है- यह गेंद और गिलास आदि उठा कर ला देता है. चल सकता है. कलर पहचान सकता है. हाथ मिला सकता है. हमजा ने बताया कि रोजाना 5 - 6 घंटे तक इस रोबोट को तैयार करने में उनका बीता है. रोबोट बैटरी से चलने वाले अपने रोबोट को वह स्मार्टफोन से कंट्रोल करते हैं.
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