टीएनपी डेस्क(TNP DESK): इन दिनों विधायक हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा कई कारणों से चर्चा में हैं. अभी ईडी ने पंकज और उनके सहयोगियों पर 1000 करोड़ के माइंस घोटाले को लेकर चार्जशीट दायर किया है. सूबे के राजनीति में रसूक रखने वाले पंकज मिश्रा और उनके विधायक प्रतिनिधि बड़े हैसियत को लेकर खासी चर्चा में हैं. सवाल ये उठता है कि आखिर ये विधायक प्रतिनिधि के पास इतनी ताकत आई कहां से तो. इसे विस्तार से समझने के लिए जानना होगा कि ये विधायक प्रतिनिधि कौन होते हैं और इनकी शक्तियां क्या होती है.  

अगर आप 18 साल या उससे ज्यादा उम्र के होंगे और आपका नाम मतदाता सूची में होगा तो आपने भी वोट जरूर डाला होगा. खैर, वोट डालना हमारा संवैधानिक हक है. आम नागरिक या तो अपने क्षेत्र के सांसद के लिए वोट करता है या तो विधायक के लिए. लेकिन आए दिन आपके क्षेत्र में विधायक और सांसद प्रतिनिधि की चर्चा जरूर होते हुई सुनी होगी. और आपके भी मन में ये सवाल जरूर आया होगा कि हमने तो विधायक और सांसद के लिए वोट किया था, उनकी जगह ये प्रतिनिधि कैसे आ गया. प्रतिनिधि का चुनाव कैसे हुआ, क्या करता है ये प्रतिनिधि, क्या संवैधानिक मामले में प्रतिनिधि शब्द का कोई जिक्र है. तो चलिए समझते हैं कि आखिर ये है क्या?

विधायक और सांसद ही चुनते हैं प्रतिनिधि

लोकतंत्र में जनादेश जनता देती है. जनता ही अपने वोट के माध्यम से आदेश देती है कि कौन उनका प्रतिनिधि बनकर विधानसभा और लोकसभा में जाएगा. जनता के आदेश को इसीलिए जनादेश कहा जाता है. और उसके द्वारा चुने गए नेता को जनप्रतिनिधि. लेकिन अब जनता के चुने हुए प्रतिनिधि भी अपना प्रतिनिधि रखने लगे हैं और उन्हें ही आम भाषा में विधायक या सांसद प्रतिनिधि कहते हैं.

ज्यादा काम का हवाला देकर रखते हैं प्रतिनिधि

विधायक और सांसद ज्यादा काम का हवाला देकर प्रतिनिधि नियुक्त करते हैं ताकि क्षेत्र की जनता का समस्या जल्द से जल्द खत्म हो सके. लेकिन सवाल ये उठना जरूरी है कि अगर देश का एक सांसद और विधायक अपना क्षेत्र नहीं देख सकता तो देश के प्रधानमंत्री और राज्य के सीएम पूरा क्षेत्र कैसे देखते होंगे. दरअसल, जनता ने जनादेश भी जनप्रतिनिधि को दिया है ना कि उसके प्रतिनिधि को. लेकिन खुद को जनप्रतिनिधि का प्रतिनिधि बताकर आखिर कौन लोकतंत्र का मजाक उड़ा रहा है?

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विधायक-सांसद को प्रतिनिधि नियुक्त करने का अधिकार नहीं!

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सांसद हो या विधायक, अपनी जगह किसी अन्य को प्रतिनिधि नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं है. इस बात की पुष्टि सूचना का अधिकार के तहत मिली जानकारी से हुई है. इस लिहाज से प्रतिनिधियों की नियुक्तियां अवैध और असंवैधानिक है. इस मामले को यूं समझिए कि एक किसान अपने कार्यों के निष्पादन के लिए मजदूर नियुक्त करता है फिर वह मजदूर अपनी जगह एक अन्य मजदूर नियुक्त कर उसे कार्य पर लगा देता है. बिल्कुल वही काम होता है प्रतिनिधि का. खैर, इसे पूरी तरह से असंवैधानिक माना गया है.