धनबाद(DHANBAD): चुनाव में अभी देर है लेकिन "खेल" शुरू हो गया है. कौन चुनाव लड़ेगा, किसको टिकट मिलेगा , किसका पत्ता  कटेगा, कौन पार्टी का "सिरमौर" होगा, इसको लेकर सभी संसदीय क्षेत्र में दावे- प्रतिदावे, घात- प्रतिघात शुरू हो गए  है. धनबाद से लेकर दिल्ली और दिल्ली से लेकर दौलताबाद की दौड़ शुरू हो गई है. सब चाहते हैं कि वह सांसद बने. धनबाद को लेकर मामला चाहे बीजेपी का हो या कांग्रेस का ,सभी जगह "घुड़दौड़” है. एक -दूसरे से आगे निकलने की होड़ है. भाजपा की बात की जाए तो पशुपतिनाथ सिंह लगातार तीसरी बार धनबाद से सांसद है. उनके पार्टी के प्रतिद्वंदियों को उम्मीद है कि बढ़ती उम्र के कारण हो सकता है कि उनका टिकट कट जाए, हालांकि पशुपतिनाथ सिंह की गतिविधिया यह  बता रही है कि बढ़ती उम्र का अभी उनकी सेहत पर  असर नहीं दिख रहा है. लेकिन उनकी  पार्टी में ही टिकट के लिए कई दावेदार खड़े हो गए है. कहने  को तो कहते हैं कि अगर पशुपतिनाथ सिंह यानी भाई जी को टिकट नहीं मिला , तभी उनकी दावेदारी रहेगी. भाई जी को टिकट मिले, इस पर किसी का विरोध नहीं है. 

टिकट पाने के चाहत रखने वालों की सभी जगह लम्बी सूचि 
 
फिर भी भाजपा में टिकट पाने की इच्छा रखने वालों की एक लंबी सूची है. इस सूची में स्थानीय के अलावा  बाहर के लोगों के नाम भी जोड़े जाते है. स्थानीय लोगों में विधायक राज सिन्हा , पूर्व मेयर  चंद्रशेखर अग्रवाल, विधायक ढुल्लू महतो, बोकारो के विधायक विरंची  नारायण के नाम गिनाये जाते है. वैसे कोडरमा के पूर्व सांसद रविंद्र राय, गिरिडीह के पूर्व सांसद रविंद्र पांडे की भी धनबाद लोकसभा सीट पर नजर है. चतरा  के सांसद सुनील कुमार सिंह का भी नाम उछलता रहता है. इधर,  जमशेदपुर पूर्वी के निर्दलीय विधायक सरयू राय भी  धनबाद में सक्रियता बनाए रहते है. उनका नाम भी लोकसभा सीट के लिए उछलता रहता है. हालांकि वह भाजपा में नहीं है. अब अगर कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस में भी दावेदार बहुत अधिक है. अगर नाम की गिनती की जाए तो 1996 में वरीय  कांग्रेस नेता विजय कुमार सिंह धनबाद संसदीय क्षेत्र से  चुनाव लड़ चुके है. उसके बाद 2014 में अजय कुमार दुबे भी धनबाद लोकसभा से चुनाव लड़ चुके है. लेकिन चुनाव में हार  के बाद इनकी गतिविधियां थोड़ी सीमित हो गई. वैसे दावेदारी बनी हुई है.

2004 में ददई दुबे ने प्रोफेसर रीता वर्मा को हराया था 

वैसे भाजपा से लगातार चार बार सांसद रही प्रोफेसर  रीता वर्मा को 2004 में कांग्रेस के ददई दुबे ने पराजित किया और उसके बाद पशुपतिनाथ सिंह लगातार धनबाद से सांसद है. ददई दुबे भी टिकट पाने की रेस में है. और भी कई लोग हैं, जिनमे  प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश ठाकुर, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार के नाम भी लिए  जाते है. नाम तो मंत्री बना गुप्ता और बादल पत्र लेख का  भी कभी-कभी उछाल दिया जाता है. लेकिन यह उत्साह में अधिक और विश्वास में कम होता है. झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह एवं प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष जलेश्वर महतो का भी नाम रेस के लिए आता है. मयूर शेखर झा का भी नाम चर्चा  में रहता है. लेकिन वह  धनबाद से अधिक बाहर ही रहते है. कभी-कभी आते हैं और कार्यक्रम में हिस्सा लेते है. पूर्व जिला परिषद् सदस्य व वरीय कांग्रेस नेता  अशोक कुमार सिंह भी टिकट पाने के मजबूत  दावेदारों की सूची में है. वैसे धनबाद लोकसभा क्षेत्र में भूमिहार जाति के वोटर अधिक होने से भूमिहार टिकट पाने का दावा ठोकते रहे है. अशोक कुमार सिंह धनबाद में लगातार सक्रिय हैं और लोगों में अपनी पैठ  बनाने के लिए पहले भी और अभी भी सक्रिय है. कोरोना काल में एक महीने तक चौबीसो घंटे निःशुल्क एंबुलेंस सेवादी. यह अभी जारी है. इसके अलावे किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए जमीन  पर काम कर रहे है. अभी हाल ही में 180 किलोमीटर की छह  विधानसभा क्षेत्र की उन्होंने यात्रा पूरी  की. वैसे पानी  एक्सप्रेस के रूप में भी उन्हें जाना जाता है. बहरहाल, जो भी हो 2019 के चुनाव में पशुपतिनाथ सिंह को 8 लाख से भी अधिक वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के टिकट पर कीर्ति आजाद ने चुनाव लड़ा तो उन्हें लगभग 3. 50  लाख वोट मिले थे. अंतर लगभग पांच लाख वोटों का था. लेकिन चुनाव परिणाम के बाद कीर्ति आजाद ने धनबाद में कभी दर्शन नहीं दिए. बहरहाल, गठबंधन  धनबाद लोकसभा सीट जीतने  के लिए लगभग पांच लाख वोट के गैप को पाटने  के लिए क्या करता है और भाजपा अंतर को और बढ़ाने के लिए क्या जुगत करती है, ,यह देखने वाली बात होगी.  

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो