टीएनपी डेस्क (TNP DESK): मीरा परिहार की कविता पंक्तियां हैं, पशु और मनुष्य साझी संस्कृति का हिस्सा रहे हैं. गाय, बैल,बकरी, भैंस,श्वान घर का हिस्सा रहे हैं. अब बनने लगे हैं फैशन पर्याय अकेलेपन साथी. हमारी पंचतंत्र कहानियों में, नाना किस्सा रहे हैं. लेकिन आज हम पशु से दूर होते गए हैं. इसी का नतीजा है कि आज प्रकृति ने हमसे दुराव कर लिया है. लेकिन इन तमात विपरीतताओं के आज भी ऐसे प्रेम देखने को मिल जाते हैं कि विश्वास पुख्ता होता है कि प्रकृति और सहजता ही जीवन का मूल है, और आधार भी. हम आपको ऐसी ही एक खबर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे पढ़कर आप भावुक हुए बिना नहीं रहेंगे.

पशु के मनुष्य प्रेम की कहानी

हजारीबाग के चौपारण प्रखंड के पपरो में मेवालाल ठाकुर रहते थे. उनके पास एक गाय थी. गाय ने एक बछड़ा दिया. मेवा ने बछड़ा को तीन माह पहले दूसरे गांव के किसान को बेच दिया. शनिवार को अचानक मेवालाल की मौत हो गई. जब उनके पार्थिव देह को गांव वाले अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट लेकर पहुंचे तो सबकी आंखें फटी की फटी रह गईं. न मालूम यह कैसे हुआ. वो बछड़ा जिसे मेवा ने किसी और को बेच दिया था, डबडबाई आंखों के साथ वहां आ पहुंचा था. बछड़े ने अर्थी पर रखे शव के माथे और पैर को चूमा. चिता की जब परिक्रमा की जाने लगी तो उस बछड़े ने भी उसी प्रकार उनके साथ पांच बार परिक्रमा की. इसके बाद पाथिर्व शरीर के पंचतत्व में विलीन होने तक बछड़ा वहीं पर रहा. इस पशु ने संवदेनहीन होते समय और समाज को बहुत बड़ा संदेश दिया है, जिसकी चर्चा आसपास के इलाके में जमकर हो रही है.