टीएनपी डेस्क(TNP DESK): 4 दिनों तक चलने वाले महापर्व छठ की शुरुआत 25 अक्टूबर से हो जाएगी. 25 अक्टूबर को नहाए खाए के साथ 26 अक्टूबर को खरना, 27 को डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाएगा, वहीं 28 अक्टूबर को उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ ही छठ महापर्व का समापन हो जाएगा. छठ महापर्व को आस्था का महापर्व कहा जाता है. यह काफी साफ सुथरा और विधि विधान से किया जाने वाला महापर्व है. इसमे लोग काफी ज्यादा सावधानियां बरतते है.लेकिन छठ महापर्व में आप लोगों ने देखा होगा कि हम उगते हैं और डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देते है. ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि जब छठी मैया का महापर्व है तो सूर्य भगवान को अर्घ्य क्यों दिया जाता है तो चलिए इसके पीछे की पौराणिक कथा को जान लेते है.
कौन है छठी मैया ?
आपको बताएँ कि मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना करने वाली देवी प्रकृति ने अपने आप को 6 भागों में बांटा था. देवी के छठें रूप को सबसे ज्यादा शक्तिशाली माना गया है. जो ब्रह्मा जी की मानस पुत्री है. इन्हें ही छठी मैया के नाम से जाना जाता है और 4 दिनों के महापर्व के दौरन इनकी आराधना की जाती है. वहीं छठ पर्व से भगवान सूर्य देव का नाम भी जुड़ा हुआ है चलिए जान लेते है छठ पर महापर्व में भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे की पारंपरिक वजह क्या है.
महापर्व पर सूर्य देव को क्यों दिया जाता है अर्घ्य ?
धार्मिक जानकारों की मानें तो भगवान सूर्य देव छठी मैया के भाई है. ऐसे में छठ पर्व के दौरन भगवान सूर्य की भी आराधना की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि जब किसी नवाजत बच्चे का जन्म होता है तो 6 महीने तक छठी मैया उस नवाजत बच्चों के साथ रखती है और उसकी देखभाल करती हैं और रक्षा करती है.
पढ़ें छठ मैया से जुडी यह पौराणिक कथा
जिन महिला पुरुषों की संतान नहीं होती है वे छठ महापर्व को करते है ऐसा कहा जाता है कि भगवान आपको संतान देते है. इसके साथ एक पौराणिक कथा भी है जिसके अनुसार प्रियंवद नाम का एक राजा था. जिनकी कोई संतान नहीं थी. इसके बाद महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी. इस यज्ञ का प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति तो हुई लेकिन, वह मरी हुई थी. मरे बच्चे को देखकर राजा वियोग में प्राण देने लगे तभी उनके सामने देवसेना प्रकट हुई और उनको कहा कि आप देवी षष्ठी का व्रत रखो इससे संतान की प्राप्ति होगी, फिर राजा ने बिल्कुल ऐसा ही किया. जिसके प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई. तब से संतान की कामना के लिए भी छठ पूजा की जाने लगी.
महाभारत से भी जुड़ी हुई है छठ की आस्था
छठ पर्व की आस्था महाभारत से भी जुड़ी हुई है. ऐसा माना जाता है कि जब पांडवों अपना सारा राजपाट हार गए तब द्रौपदी ने छठ माता का व्रत किया था और उनकी मनोकामना पूर्ण हुई. छठी मैया की कृपा से पांडवों को उनका राज पाठ मिल गया. ऐसा कहा जाता है कि माता सीता ने भी छठ व्रत किया था.

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