रांची (RANCHI): सावन-भादो में चार दिनों से झारखंड में राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ है. सबकी निगाहें राजभवन की ओर टकटकी लगाए हैं, लेकिन अबतक उधर से कोई भी आधिकारिक जानकारी नहीं मिली है. पाठक संदर्भ समझ ही रहे होंगे. याद दिला देते हैं. दरअसल ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में राज्य के अगुआ हेमंत सोरेन फंस चुके हैं. मामला राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग तक जा पहुंचा. लगातार कई सुनवाई के बाद आयोग ने पिछले दिनों अपना मंतव्य सुरक्षित रख लिया था. लेकिन दिल्ली से उड़ी एक सूचना जब गुरुवार को रांची पहुंची तो सियासत में मानो उबाल आ गया. लोकल से लेकर नेशनल मीडिया में सूत्रों के हवाले से खबर चलने लगी कि आयोग ने हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी है. इस संबंध का पत्र राज्यपाल को भेज दिया है. हालांकि जब दिल्ली से राज्यपाल रांची पहुंचे तो इससे इनकार किया. लेकिन फिर दूसरे दिन सूत्रों के ही हवाले से खबर चली कि बात सच है. अब राज्यपाल को आयोग को अपनी अनुशंसा भेजनी है. उसके बाद राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग राज्य आयोग को सूचना देगा. यह राज्य निर्वाचन आयोग स्पीकर को खबर करेगा. इस प्रक्रिया से गुजरकर हेमंत सोरेन की विधायकी अपने खत्म होने के अंजाम तक पहुंचेगी.
राजभवन से अबत नहीं हुआ कोई बयान जारी
शुक्रवार से रविवार आ पहुंचा, राजभवन से कोई बयान जारी नहीं हुआ है, न ही आयोग को किसी तरह के पत्र ही भेजने की खबर है. हालांकि यूपीए गठबंधन के प्रमुख घटक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर कह चुके हैं कि राज्यपाल को निर्णय लेने में विलंब नहीं करना चाहिए. राज्यपाल को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को विधायकी से अयोग्य करने संबंधित अनुशंसा आयोग को भेजनी है. जबकि सूत्रों के अनुसार निर्वाचन आयोग ने हेमंत सोरेन को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9 (ए) के तहत दोषी मानते हुए उन्हें विधायक के पद से अयोग्य किए जाने का मंतव्य राज्यपाल को भेज दिया है. लेकिन उस आदेश पर राज्यपाल ने अबतक हस्ताक्षर नहीं किया है. न ही राज्यपाल अपना आदेश कब जारी करेंगे, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी ही मीडिया में दी गई है. इसकी वजह बताई जा रही है कि राज्यपाल अभी चुनाव आयोग के परामर्श का वैधानिक पहलुओं का अध्ययन करा रहे हैं. इसके बाद वे अपने आदेश को भारत निर्वाचन आयोग को को भेजेंगे.
क्या होता है ऑफिस ऑफ प्रॉफिट
यदि कोई व्यक्ति सरकारी पद पर रहते हुए अन्य सुविधा का लाभ उठा रहा है तो यह सरासर कानून विरुद्ध है. ऐसी हालत में वो सदन का सदस्य नहीं रह सकता है. क्योंकि उसे उसकी सेवा के बदले वाजिब मानदेय मिलते ही हैं. भत्ता का भी भुगतान किया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 102 (1) A और 191 (1) के अनुसार कोई भी सांसद या विधायक ऐसे किसी पद पर नहीं रह सकता, जहां उसे वेतन, भत्ते, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से या फिर किसी दूसरी तरह के लाभ मिलते हों.
विधानसभा में 'लाभ का पद'
भारतीय जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 9 (A) भी सांसदों और विधायकों को किसी दूसरे मद से लाभ या अन्य पद लेने पर रोक लगाती है. संविधान के अनुच्छेद 191(1)(ए) के मुताबिक अगर कोई विधायक किसी लाभ के पद पर पाया जाता है तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है.
हेमंत का क्या है मामला
भाजपा ने हेमंत सोरेन पर मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए रांची के अनगड़ा में 88 डिसमिल पत्थर माइनिंग लीज लेने का आरोप लगाया था. 10 फरवरी को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा के एक प्रतिनिधि मंडल ने राज्यपाल से मुलाकात की थी. और इस मामले में हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द करने की मांग की थी. आरोप लगाया था कि सोरेन ने पद पर रहते हुए माइनिंग लीज ली है. यह लोक जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RP) 1951 की धारा 9A का उल्लंघन है. राज्यपाल ने यह शिकायत चुनाव आयोग को भेज दी थी.
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