टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : कोरोना की दूसरी लहर रेमडेसिवर नामक दवा ने सुर्खियां बटोरी थी. दरअसल WHO ने कोविड के दौरान इस दवा के सेवन की परामर्श दी थी. इसके बाद मांग का आलम यह रहा कि पांच गुना कीमत में भी असली रेमडेसिवर मिल रहा या ग्लूकोज भर कर इंजेक्शन में दिया जा रहा, इसका पता नहीं. कई लोगों को इस बात का मलाल रहा कि समय पर रेमडेसिवर मिल गया होता तो उनके अपनों की जान बच जाती. मेडिकल साइंस की ताजा रिपोर्ट की माने तो अब यह मलाल नहीं रहना चाहिए. इस दवा के खास कारगर होने के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं. इसीकारण भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इसके इस्तेमाल को भी कम करने के निर्देश दिए हैं.
यह है रिसर्च रिपोर्ट
ताजा जानकारी के मुताबिक रेमडेसिवर एक प्रायोगिक दवा थी, चमत्कार नहीं. यह कोरोना मरीजों पर कोई खास असर नहीं डालती. अब यह दवा केवल उन कोरोना मरीजों को दी जा सकती है, जिन्हें ऑक्सीजन दी जा रही है. दरअसल 30 देशों के 405 अस्पतालों में कोविड के मरीजों पर सॉलिडेरिटी ट्रायल किया गया. देखा गया कि 2750 ऐसे मरीज थे जिन्हें रेमडेसिवर दिया गया था. इनकी मौत भी ठीक उसी तरह हुई जैसे 2708 मरीजों का सामान्य इलाज किया जा रहा था. इस नतीजे ने साफ किया कि दवा ने मृत्यु रोकने में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभायी. दुनिया भर में किए जा रहे अन्य रिसर्च में भी कुछ ऐसे ही परिणाम आए हैं.
धरे रह गए स्टॉक
इस बार आलम यह है कि झारखंड और बिहार समेत देश के तमाम हिस्सों में पहले से ही रेमडेसिवर के इंजेक्शन का स्टॉक रख लिया गया था, पर नाम मात्र का इस्तेमाल हुआ. ज्यादातर जगह तो एक्सपायर हो गईं ये दवाएं. झारखंड की ही बात करें तो यहां पचास करोड़ रुपए के नौ लाख रेमडेसिवर की डोज पड़ी है. थर्ड वेव में संक्रमित 65 हजार लोगों में से केवल 33 को ही रेमडेसिवर लगाने की जरुरत पड़ी. रांची के सिविल सर्जन ने पिछले दिनों मीडिया को बताया कि स्टॉक में उपलब्ध दो हजार रेमडेसिवर फरवरी माह में एक्सपायर हो जाएंगी.
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