धनबाद (Dhanbad) जमीन के नीचे आग और उपर बिंदास जिंदगी, यही बन गई है झरिया शहर की पहचान 1919 में भड़की भूमिगत आग ने प्रदेश को ही नहीं ,देश को भी परेशान किया और यह सिलसिला आज भी चल रहा है.पुनर्वास के नाम पर आओ कमिटी, खेले खेल वाला खेल चल रहा है. काम की रफ़्तार कितनी धीमी है इसका प्रमाण है कि 2004 में पुनर्वास के लिए जरेडा का गठन किया गया था,लेकिन उसे कोई खास सफलता नहीं मिली.इधर पुनर्वास का काम चलता रहा और झरिया शहर से हटाने वालों की संख्या बढ़ती रही. पुनर्वास के लिए 2004 में कराये गए सर्वे में रैयतों की संख्या 27 हज़ार थी.2008 के सर्वे में यह बढ़कर 54 हज़ार हो गई.
समितियां आती है ,जाँच करती है ,रिपोर्ट देती है ,लेकिन काम आगे नहीं बढ़ता.
2019 के सर्वे में यह संख्या 1.04 लाख हो गई.केंद्र सरकार के अनुसार हटाने वालों को स्मार्ट सिटी की तर्ज पर बसाया जाए.इसके लिए दस हज़ार एकड़ जमीन चाहिए जो नहीं मिल रही है. हालत यह है कि न आग पर काबू हो पा रहा है और न पुनर्वास का काम पूरा हो रहा है.समितियां आती है,जाँच करती है ,रिपोर्ट देती है,लेकिन काम आगे नहीं बढ़ता.इधर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकार NDRF की टीम ने सोमवार को झरिया का दौरा किया.यह टीम कई इलाकों में गई.यहां पर रह रहे लोगों का हालचाल भी जाना.संबंधित अधिकारियों से झरिया पुनर्वास के संबंध में जानकारी ली.टीम में कृष्ण वत्स,हुकुम सिंह मीणा, शेखर शरण,आरएम भट्टाचार्य सहित बीसीसीएल के कई अधिकारी थे.टीम क्या रिपोर्ट देती है ,इसपर कोयलांचल की नजर रहेगी.
रिपोर्ट : अभिषेक कुमार ,ब्यूरो हेड ,धनबाद
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