टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : 3 सितंबर (बुधवार) की रात पलामू के मनातू में हुए मुठभेड़ में दो जवान संतन मेहता व सुनील राम शहीद हो गए. शहीद हुए जवानों के परिजनों से सोमवार को वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने मुलाकात की. परिजनों को सांत्वना दी और मुआवजा की भी घोषणा की. वित्त मंत्री ने दोनों जवानों के परिजनों को 2.10 करोड़ मुआवज़ा, आवास, नौकरी व सड़क निर्माण की घोषणा की. इस दौरान वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने कहा कि शहीद हुए जवानों के परिवारों के साथ सरकार हर परिस्थिति में खड़ी रहेगी.
लेकिन अब इस मुआवजा पर भी सवाल खड़े हो गए हैं, कि आखिर इन जवानों की शहादत का असली जिम्मेदार कौन है? लापरवाह सिस्टम, गलत रिपोर्ट, या फिर अधिकारियों की आंख मूंदकर तैयार की गई समीक्षा? वहीं इस मामले को लेकर भाजपा प्रदेश प्रवक्ता अशोक बड़ाईक ने कहा कि क्या मात्र सरकार की ओर से मुआवजा देने से परिजनों का दुख कम हो जाएगा. क्या उस पैसे से किसी का बेटा, किसी का पति, किसी का पिता वापस तो नहीं आ पाएगा. उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आखिर ऐसी नौबत ही क्यों आयी कि जवानों को शहीद होना पड़ा. साथ ही उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ऐसी सिस्टम को जेनरेट करे ताकि भविष्य में किसी भी जवान को बलिदान नहीं देना पड़े.
खुफिया इनपुट फेल या लापरवाही !
मनातू मुठभेड़ को लेकर कहा जा रहा कि पुलिस को पहले ही इनपुट मिल गया था कि इलाके में नक्सली मूवमेंट है. लेकिन जब ऑपरेशन शुरू हुआ तो नक्सली पुलिस से ज़्यादा तैयार थे. जैसे ही जवान मौके पर पहुंचे, नक्सलियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. इससे पहले कि जवान कुछ समझ पाते, तीन को गोली लग गई. इनमें से दो शहीद हो गए, जबकि तीसरा ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है. इस पूरी घटना से साफ़ है कि या तो इनपुट अधूरा था या फिर ऑपरेशन की तैयारी बेहद कमज़ोर थी. दोनों ही स्थितियों में ज़िम्मेदारी पुलिस अधिकारियों की बनती है. आखिर इंटेलिजेंस नेटवर्क क्यों फेल हुआ? क्या स्थानीय सूत्रों से सही जानकारी जुटाने में लापरवाही हुई या फिर उसे हल्के में लिया गया?
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