टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : झारखंड में कुर्मी और आदिवासियों का आंदोलन अब उग्र होने की ओर बढ़ रहा है. लोग इस आंदोलन को मणिपुर के कुकी और मैतई जाति के बीच संघर्ष से जोड़कर देख रहे हैं. क्योंकि झारखंड में भी हालत कुछ मणिपुर जैसा बनाने की बात कुछ नेता अपनी भाषण दे रहे हैं. झारखंड में कुर्मी खुद को आदिवासी यानी एसटी सूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं, जिसका विरोध आदिवासी खुलकर करने में लगे है. लोगों का अब सड़क पर आक्रोश देखने को मिल रहा है. बीते एक माह से शुरू हुआ यह आंदोलन अब उग्र हो गया है. सोशल मीडिया पर तनाव जैसे हालात है. आखिर इसका अंजाम क्या होगा किसी को नहीं मालूम, लेकिन इशारा साफ है कि समय रहते ऐसे रोका नहीं गया तो झारखंड भी हिंसा की आग में जल सकता है.
मणिपुर में भी पहचान, आरक्षण और जमीन को लेकर शुरू हुआ था विवाद
मणिपुर में कुकी-मैतेई संघर्ष की जड़ भी कुछ ऐसी ही थी: पहचान, आरक्षण और भूमि अधिकारों को लेकर असंतोष. यह असंतोष धीरे-धीरे हिंसा में बदल गया, जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों लोगों की जान चली गई. झारखंड में स्थिति अभी उस स्तर तक नहीं पहुंची है, लेकिन बढ़ता अविश्वास और जातीय ध्रुवीकरण चिंता का विषय है. झारखंड में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को मज़बूत करने के लिए इस विवाद को हवा दे रहे हैं. राज्य के कई हिस्सों में दोनों समुदायों के बीच मामूली विवाद तनाव में बदल गया. सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्टों ने स्थिति को और भड़का दिया.
कुर्मी समाज ने 20 सितंबर को शुरू किया रेल रोको, डहर छेको आंदोलन
सबसे पहले कुर्मी आंदोलन की करते हैं-कुर्मी समाज खुद को अनुसूचित जनजाति किस श्रेणी में लाने को लेकर 20 सितंबर को रेल रोको डहर छेको आंदोलन शुरू किया. इस आंदोलन में पूरे झारखंड-बंगाल और उड़ीसा में रेलवे ट्रैक पर कुर्मी समाज के लोग बैठ गए. केंद्र सरकार पर अनुसूचित जनजाति की श्रेणी से बाहर करने का आरोप लगाया. इसके साथ ही मांग किया कि अब इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के बाद ही आंदोलन खत्म होगा. लेकिन आंदोलन का साइड इफेक्ट ऐसा हुआ कि जिस अनुसूचित जनजाति में खुद को शामिल करने की मांग कुर्मी कर रहे हैं वह जाति अब इनके खिलाफ विरोध के स्वर बुलंद कर चुकी है. तमाम आदिवासी समाज के लोग सड़क पर उतर गए और धीरे-धीरे आंदोलन की गूंज पूरे झारखंड में पहुंच गई. राजधानी रांची से शुरू हुए प्रदर्शन पलामू, बोकारो, गुमला, जमशेदपुर, धनबाद, खूंटी और झारखंड के अलग-अलग जिलों तक प्रदर्शन हुआ. इसके बाद फिर वापस रांची में एक शक्ति प्रदर्शन के रूप में आदिवासियों ने हुंकार भरी.
कुर्मी/आदिवासी आंदोलन का सोशल मीडिया पर दिख रहा असर
इन दोनों आंदोलन इसका साइड इफेक्ट सोशल मीडिया पर भी दिख रहा है. अब एक नेता दूसरे समाज के खिलाफ जहर उगल रहें है. कई बार एक दूसरे नेताओं पर अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं जो इशारा कर रहा है कि झारखंड गलत ट्रैक पर अगर जाता है तो फिर मणिपुर बनने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि दोनों जाति की आबादी यहां पर अच्छी खासी है. यही वजह है कि सरकार भी कोई स्टेप या कोई बयान देने से पहले सोच रही है. आंदोलन को इतने दिन बीत गए उसके बावजूद कोई भी बयान सरकार की ओर से नहीं आया है.
इस आंदोलन ने भगवान बिरसा मुंडा को ही किया टारगेट
अब अगर कर्मी आंदोलन की नेताओं के बयान को देखें तो प्रमुख रूप से इस आंदोलन को आजसू के सुप्रीमो व पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो और डुमरी विधायक जयराम लीड कर रहे हैं. इनके एक इशारे पर लोग सड़क पर उतरे और रेल ट्रैक जाम कर दिया. दोनों कुर्मी के बड़े चेहरे झारखंड में बने हैं, ऐसे में अब उनके बयान उनके भाषण काफी मायने रखते हैं. यह तो थोड़ा संयम होकर अपनी बात रखते हैं, लेकिन बाकी दूसरे नेता सीधे तौर पर अब भगवान बिरसा मुंडा को ही टारगेट कर दिया. कुछ लोगों ने दिशोम गुरु शिबू सोरेन पर सवाल उठा दिया इससे आदिवासी समाज और भड़क रहा है.
इन सब बयान के बाद आदिवासी समाज के भी कई लोग सोशल मीडिया पर कई अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए वीडियो पोस्ट करने लगे और खुली चुनौती कुर्मी नेताओं को देने लगे. कुर्मी समाज से आने वाले महापुरुषों पर ही सवाल खड़ा हुआ. टकराव जैसे हालात बने. अब इन तमाम चीजों को देखकर लगता है कि अगर समय पर आंदोलन को रोक नहीं गया तो झारखंड को मणिपुर बनने से कोई नहीं रोक सकता.

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