रांची(RANCHI): बिहार में इंडिया गठबंधन से झामुमो अलग रास्त पर चल पड़ा था.चुनाव में सीट नहीं मिलने से नाराज हो कर अकेले ही बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. जिसके बाद झारखंड में भी राजनीतिक तपिश बढ़ गई है. और चर्चा शुरू हो गई की क्या इसका असर झारखंड में भी देखने को मिलेगा. और राजद कोटे से हेमंत मंत्रिमंडल में शामिल संजय यादव की कुर्सी भी क्या जा सकती है.झामुमो ने खुद यह बोल दिया कि अब समीक्षा कर रहे है. जल्द निर्णय लेंगे.   

अगर बात झामुमो राजद और कांग्रेस के गठबंधन की करें तो फिलहाल बिहार में घमासान मचा है. कई सीट पर कांग्रेस और राजाद भी आमने सामने है. एक ही सीट पर दोनो पार्टी ने उम्मीदवार उतार दिए. ऐसे में यह चर्चा शुरू ही थी की ये कैसा गठबंधन बिहार में हुआ. जिसमें कोई भी कही से उम्मीदवार दे रहा है फिर सीट शेयरिंग की बात कहा चली गई. इसी बीच लंबे समय से कई राउंड की बैठक के बाद भी झामुमो को कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला और झामुमो ने भी अब उम्मीदवार उतारने का फैसला कर लिया.और चकाई कटोरिया मनिहारी जमुई और पीरपैंती धमगाहा सीट पर उम्मीदवार देंगी.चकाई और मनिहारी ST रिसर्व सीट है.जबकि बाकि अन्य है. इन सीट पर झामुमो ने स्टार प्रचारक की भी  घोषणा की है.

इस फैसले का असर जाहीर है कि झारखंड में भी देखने को मिलेगा. आने वाले दिनों में झारखंड में गठबंधन में खटास बढ़ सकती है. जिस तरह से बिहार में झामुमो को गठबंधन से दूर किया गया. इसका असर झारखंड की राजनीति में दिख सकता है. हो सकता है कि अगर बात बढ़ी तो संजय यादव को मंत्री मंडल से हटाया भी जा सकता है. क्योंकि झारखंड में राजद को हेमंत सोरेन ने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए एक मंत्रिमंडल में जगह दी थी.

यहाँ देखे तो झारखंड में राजद की जीत में बड़ा हाथ हेमंत सोरेन का है. हेमंत के रणनीति के वजह से चार सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाबी  मिली. और हेमंत ने बड़ा दिल दिखाते हुए एक विधायक को मंत्री बनाया. लेकिन जब बात बिहार में झामुमो को चुनाव लड़ने की आई तो राजद ने नजर अंदाज कर दिया. यही वजह है कि आने वाले दिनों में बिहार चुनाव के बाद झामुमो राजद को अलग कर सकती है. क्योंकि झारखंड में कांग्रेस-झामुमो-सीपीआई को मिला कर  ही गठबंधन बहुमत के पार है. 52 विधायकों का समर्थन राजद को हटाने के बाद भी हेमंत के पास रहेगा.