दुमका (DUMKA) : सब्जी का राजा आलू को कहा जाता है, इसकी खासियत है कि हर सब्जी के साथ आसानी से घुल मिल जाता है फिर भी अपनी पहचान को बरकरार रखता है. इसके बाबजूद कुछ ऐसी भी सब्जियां है जो अपने आप में अनोखी होती है. आज हम बात करेंगे एक ऐसी हरी सब्जी की जिसकी मांग वैसे तो सालों भर होती है लेकिन लोक आस्था का महापर्व छठ के समय इसकी मांग इस कदर बढ़ती है कि इसकी कीमत आसमान छूने लगती है. वजह साफ है, छठ की शुरूआत नहाए खाए से होती है जिसे कदुआ भात भी कहते है.
यहां है कद्दू का पेड़
कद्दू को लौकी, पंपकिन आदि नाम से भी जाना जाता है. इसकी आकृति गोल या लंबा होता है. यह पौधा लता के रूप में होता है जो जमीन पर फैलता है. लेकिन आज हम जिस कद्दू की बात कर रहे है वह पेड़ पर फलता है. पेड़ भी कोई छोटा नहीं बल्कि विशालकाय होता है. आज हम आपको The News Post के माध्यम से पेड़ पर लगे कद्दू का दीदार कराएंगे.
कद्दू का पेड़ देखना हो तो अमेरिका नहीं दुमका आना होगा
पेड़ पर फलने वाले कद्दू को कलाबस कहते है. यह मूल रूप से अमेरिका और उसके आस पास के देशों पाया जाता है. सेंट लूसिया का राष्ट्रीय पौधा है. लेकिन इसे देखने के लिए आपको अमेरिका जाने की जरूरत नहीं है. झारखंड की उपराजधानी दुमका के बासुकीनाथ में तारा मंदिर के प्रांगण में इसे आप देख सकते है.
बासुकीनाथ धाम से सटे मां तारा मंदिर प्रांगण में है कद्दू का विशाल पेड़
विश्व प्रसिद्ध बाबा बासुकीनाथ धाम से सटा मां तारा का मंदिर काफी प्राचीन है. मंदिर परिसर में कई प्रजाति के पेड़ पौधे है. उसी में एक है कद्दू का पेड़. पेड़ पर सालों भर कद्दू फलता है. कद्दू की संख्या भले ही कम होती है लेकिन इसे देखने काफी संख्या में लोग पहुंचते है. मंदिर के महंत गिरीश बाबा बताते है कि लगभग 40 वर्षों से वह इसी स्वरूप में पेड़ को देख रहे है. उनका मानना है कि पेड़ लगभग 80 वर्षों से है.
एक नजर में लगेगा आम का पेड़
यह पेड़ दूर से देखने पर लगता है कि शायद किसी फल या आम का पेड़ है. इसके तनों की मोटाई भी आम के पेड़ की तरह है. यह डालियों व घनी पत्तियों से भरा रहता है. इसकी पत्तियां अमरूद की पत्तियों जैसी दिखती हैं.
औषधीय गुणों से भरपूर होती है पेड़ पर फलने वाला कद्दू
जानकार बताते हैं कि यह कोई आम कद्दू नहीं है, बल्कि औषधीय महत्व वाला कद्दू है. इसका इस्तमाल पारंपरिक दवाई और मधुमेह के नियंत्रण में होता है. इस कद्दू में आयरन की मात्रा काफी अधिक होती है. इसके रस की तासीर ठंडी होती है. महंत गिरीश बाबा बताते है कि कद्दू को काटने पर जैसे ही हवा के संपर्क में आता है काला पड़ने लगता है. सब्जी भी काली नजर आती है. महंत बताते है कि प्राचीन काल में संत महात्मा इसका उपयोग वर्तन या पात्र के रूप में करते थे.

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