टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : झारखंड को नक्सल मुक्त राज्य बनाने के लिए सुरक्षा बलों का अभियान जारी है. इसके लिए डेडलाइन तय करके इसे नक्सल मुक्त बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है. हर बार दावा किया जाता है कि झारखंड से नक्सलवाद का खात्मा हो चुका है और अब यह कमजोर है, लेकिन नक्सली हर बार इस दावे की पोल खोलते हुए चुनौती देते हैं. हालांकि बूढ़ा पहाड़ और पारसनाथ इलाके में सुरक्षा बलों को सफलता जरूर मिली है, लेकिन सारंडा में अभी भी देरी हो रही है. ऐसे में जानते हैं कि चाईबासा के सारंडा जंगल में कौन से बड़े नक्सली हैं और कौन सा इलाका ज्यादा खतरनाक है.

सारंडा जंगल जिसे नक्सली सारंडा रेंज के नाम से जानते हैं, यहीं से नक्सली उड़ीसा और बंगाल की ओर जाते हैं। माना जाता है कि साइको इलाका के जंगल में नक्सलियों की गतिविधि ज्यादा है, जिसकी जानकारी डीजीपी को है, लेकिन इस जंगल में एक चुनौती यह भी है कि नक्सली उड़ीसा-बंगाल में इधर से उधर आते-जाते रहते हैं, आने-जाने के रास्ते फिलहाल काफी बड़े हैं। क्योंकि यह खुला जंगल है और नक्सली इसका फायदा उठाते हैं, इसलिए अब जंगल की मैपिंग की जा रही है, ताकि पुलिस को जंगल के बारे में पूरी जानकारी रहे कि नक्सली भागने के लिए कौन सा रास्ता अपनाते हैं और फिर से जंगल में घुसने के लिए कौन सा रास्ता अपनाते हैं।

अब तक इस जंगल में लंबे समय से ऑपरेशन चल रहा है, जिसमें सीआरपीएफ झारखंड जागुआर और चाईबासा पुलिस संयुक्त काम कर रही है. कई बार मुठभेड़ में सुरक्षा बल के जवानों को नुकसान उठाना पड़ा है. हाल में ही देखें तो आईडी ब्लास्ट हुआ और दो जवान उसकी चपेट में आ गए, जिसमें एक की  शहादत हो गई और एक अस्पताल में भर्ती है. शहादत का बदला लेने की बात कही गई, लेकिन इससे पहले भी कई शहादत इस जंगल में हुई है. कह सकते हैं कि फिलहाल नक्सलियों का दस्ता आक्रामक रूप में इस जंगल में बैठा है.

जब जंगल की मैपिंग की जा रही है तो उसके बाद अभियान और तेज होगा और नक्सलियों को घेर कर अंदर ढेर करने की तैयारी डीजीपी की है डीजीपी ने कहा है कि 100 सुनार की और एक लोहार की यानी जब आक्रामक रूप से कार्रवाई करेंगे तो नक्सली लाख कोशिश कर लें, फिर वह बच नहीं पाएंगे.

बुढ़ा पहाड़ और पारसनाथ में सफ़लता लेकिन सारंडा में चुनौती क्यों

चाईबासा के जंगल में कई बड़े माओवादी है. चाहे शीर्ष माओवादी मिसिर बेसरा की बात करें या फिर एनल दा के साथ तमाम शीर्ष माओवादी इस जंगल में छुपकर बैठे हैं. उनके कैडर आतंक फैला रहे, जिसे लगाम लगाना एक चुनौती से कम नहीं है. ऐसे में सवाल यह भी है कि आखिरकार सारंडा इतना चुनौतियों भरा क्यों है.

जब सुरक्षा बल के जवानों ने बूढ़ा पहाड़ और पारसनाथ के बेंगाबांध को नक्सलमुक्त जल्दी किया तो सारंडा में देरी क्यों हो रही है. बूढ़ा पहाड़ इलाके की जिम्मेदारी अरविंद जी के जिम्मे में थी अरविंद जी पर सैकड़ो मुकदमे दर्ज है और कुख्यात माओवादी में शामिल था, लेकिन अचानक अरविंद जी की मौत हुई जिसके बाद संगठन कमजोर पड़ा और बाकी कैडर भाग कर सारंडा के इलाके में शरण ले लिए. यहां पर सुरक्षा बल के जवानों को ज्यादा ताकत नहीं लगानी पड़ी और बूढ़ा पहाड़ से नक्सली खत्म हो गया.

उसके बाद गिरिडीह का पारसनाथ एरिया के जिम्मेवारी प्रशांत बॉस और शीला मरांडी के जिम्मे थी लेकिन दोनों की जब गिरफ्तारी हुई तो यहां भी संगठन कमजोर पड़ा और यहां से भी जो कैडर थे वह कोल्हान की ओर कूच कर गए. यहां पर भी पुलिस को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़े लेकिन सारंडा का जंगल में अब तमाम माओवादी बैठे हैं, जिस वजह से अभियान में देरी हो रही है लेकिन आने वाला दिन एक नई सवेरा के साथ शुरू होगा.

रिपोर्ट-समीर