धनबाद (DHANBAD) : पश्चिम बंगाल में 2026 में विधानसभा के चुनाव होने है. ऐसे में 2025 के पूजा पंडालों पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मेहरबान हो गई है. प्रत्येक पूजा पंडालों को सरकारी सहायता बढ़ाकर अब 1,10,000 रुपए कर दी गई है. पहले यह राशि 85 हजार थी. बात इतनी इतनी ही नहीं है, पूजा समितियों को बिजली बिल में 80% की छूट की भी घोषणा की गई है. सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले साल यह घोषणा की थी कि पूजा पंडालों को आगे के सालो में सरकारी अनुदान की राशि बढ़ा दी जाएगी. उन्होंने कहा था कि हर समिति को मिलने वाली सरकारी अनुदान को बढ़ाकर ₹100000 कर दिया जाएगा. लेकिन उससे भी बढ़ाकर अब 1,10,000 रुपया कर दिया गया है.
पश्चिम बंगाल में 42,000 पूजा समितियां है
फिलहाल पश्चिम बंगाल में 42,000 पूजा समितियां है. जिन्हें सरकारी अनुदान मिल सकता है. 3000 समितियां केवल कोलकाता में है. इस वर्ष अनुदान लेने वाली समितियो की संख्या बढ़ सकती है. पूजा समितियों ने ममता बनर्जी के इस घोषणा का स्वागत किया है. लेकिन विपक्षी दलों ने 2026 के विधानसभा चुनाव का हवाला देते हुए इसे राजनीतिक कदम बताया है. उनका आरोप है कि अनुदान में बढ़ोतरी वोट हासिल करने के लिए उठाया गया कदम है.
पूरे पश्चिम बंगाल में पूजा में अलग ही माहौल दिखता है
वैसे भी बंगाल में भव्य पूजा पंडाल का निर्माण होता है. पूरे पश्चिम बंगाल में पूजा में अलग ही माहौल देखने को मिलता है. बंगाल से सटे इलाकों में भी पूजा बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है. बंगाल में पूजा पंडालों को सरकारी सहायता देने की परिपाटी रही है. यह राशि क्रमवार बढ़ती रही है. 2024 में पच्चासी हजार थी, तो 2025 में बढ़कर 1,10,000 हो गया है. बंगाल का दुर्गा पूजा आज विश्व प्रसिद्ध हो गया है. दुनिया के कई देशों के लोग बंगाल का दुर्गा पूजा देखने आते है. भव्य पंडाल ,चकाचौंध कर देने वाली रोशनी के बीच चमचमाती मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है. बंगाल में दुर्गा पूजा का इतिहास बहुत पुराना है. बंगाल के रहने वाले लोग देश में रहे अथवा विदेश में, दुर्गा पूजा के समय बंगाल जरूर पहुंचते है.
बंगाल में दुर्गा पूजा का इतिहास बहुत पुराना है
बंगाल के इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि लगभग 16वीं शताब्दी के अंत में 1576 ई में पहली बार दुर्गापूजा हुई थी. उस समय बंगाल अविभाजित था, जो वर्तमान समय में बांग्लादेश है. इसी बांग्लादेश के ताहिरपुर में एक राजा कंसनारायण हुआ करते थे. कहा जाता है कि 1576 ई में राजा कंस नारायण ने अपने गांव में देवी दुर्गा की पूजा की शुरुआत की थी. कुछ और विद्वानों के अनुसार मनुसंहिता के टीकाकार कुलुकभट्ट के पिता उदयनारायण ने सबसे पहले दुर्गा पूजा की शुरुआत की. उसके बाद उनके पोते कंसनारायण ने की थी. इधर कोलकाता में दुर्गापूजा पहली बार 1610 ईस्वी में कलकत्ता में बड़िशा (बेहला साखेर का बाजार क्षेत्र) के राय चौधरी परिवार के आठचाला मंडप में आयोजित की गई थी. तब कोलकाता शहर नहीं था, तब कलकत्ता एक गांव था जिसका नाम था 'कोलिकाता' हुआ करता था.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो
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