पलामू(PALAMU): आशुरा इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने की 10वीं तारीख को कहा जाता है. यह दिन कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन (अ स) और उनके परिवार के सदस्यों की शहादत की याद में मनाया जाता है. रविवार को आशुरा के दिन शिया मुसलमानो ने शोक मनाया और इमाम हुसैन की शहादत को याद किया. मजलिसें आयोजित की गई, जिसमें इमाम हुसैन की शहादत की दास्तान से लोगों को अवगत कराया गया.

हुसैनाबाद में मोहर्रम अकीदत और एहतराम के साथ संपन्न हो गया. मुख्य कार्यक्रम वक़्फ़ वासला बेगम सदर इमामबाड़ा में हुआ. नमाज के बाद जूलूस निकाला गया. पहले सभी घरों से अलम लेकर लोग सदर इमामबाड़ा में पहुंचे.इक्कठा होकर शहर के गांधी चौक से होते हुए कर्बला की ओर जाने के क्रम में ब्लेड कमा और जंजीरी मातम कर खुद को लहू लुहान कर लिया. करबला पर पहुंच कर अलम ताजिया व सिपड़ को पहलाम की रस्म अदा की गई. शहीद ए करबला को फातेहा दिया गया.

सदर ताजिया

यहाँ का सदर ताजिया काफ़ी पुराना है जिसे लोग अपने कांधे पर उठा कर कर्बला तक ले जाते हैं. सदर ताजिया को मुत्तवल्ली सैयद तकी हुसैन रिजवी ने कंधा लगाकर उठाया. जिसके बाद सभी ने अपने-अपने अलम सिपड़ ताजिया को नौहों मातम करते हुए कर्बला तक पहुंचे.

मर्सिया ख्वानी

मुहर्रम की दसवीं को विशेष मर्सिया सैय्यद तनवीर हुसैन, सैय्यद मुबारक हुसैन, सैय्यद तनवीर ज़ैदी, मोहम्मद रज़ा, मिर्ज़ा अमीन, सैय्यद रज़ा ईमाम, बाकर हुसैन, नैय्यर रज़ा, सैय्यद मुसर्रत हुसैन आदि ने पढ़ा.

खूनी मातम

जुलूस गांधी चौक पर पहुंचा तो वहां पर लोगों ने जंजीर, कमा , ब्लेड से अपने शरीर को लहू लहान कर लिया. इस मातम को यहां के लोग खूनी मातम के नाम से भी जानते हैं. जिसे देखने के लिए काफी लोग गांधी चौक पर जमा थे.

चौक पर तकरीर करते हुए मौलाना सैयद इब्ने अब्बास ने हज़रत इमाम हुसैन की शहादत का बयान फरमाया. उन पर हुई मुसीबतों को याद किया. इसके बाद जुलुस गांधी चौक होते हुए करबला पहुंचा. जुलूस का नेतृत्व मुतवल्ली सैयद तकी हुसैन रिजवी, सैयद हसनैन ज़ैदी, ग़ंज़फ़र हुसैन, सैयद इक़बाल हुसैन, गौहर मिर्ज़ा, नेहाल मिर्ज़ा, अमीन मिर्ज़ा कर रहे थे. वहीं हैदरनगर के बभनडीह के इमामबाड़ा से अलम के साथ निकला जुलूस भाई बिगहा इमामबाड़ा पहुंचा. इमामबाड़ा में मजलिस के बाद शिया मुसलमानो ने अलम ताजिया व सिपड़ के साथ जुलूस निकाला. जुलूस भाई बिगहा चौक पर पहुंचते ही शिया मुसलमानो ने जंजीर और ब्लेड मातम कर खुद को लहू लुहान कर लिया. एक किलो मीटर दूर भाई बिगहा करबला तक लोग ब्लेड मातम करते हुए लहू लुहान पहुंचे. पहलाम की रस्म अदा करने के बाद शाहिद ए करबला को शिरनी फातेहा करने के बाद अपने अपने घर लौट गए.