पाकुड़(PAKUR): झारखंड के पाकुड़ जिले के हिरणपुर बाजार से बस दो किलोमीटर दूर, खेतों के बीच, हरियाली की चुप्पी में बसा है एक ऐसा स्थान, जहां कदम रखते ही मन अपने आप झुक जाता है. बाबा लंगटा मसान—एक नाम नहीं, लोगों की सांसों में बसी आस्था है.
न कोई भव्य मंदिर, न पत्थर की मूर्ति, बस एक वटवृक्ष की छांव, और उसके नीचे जलती एक दीया—जिसकी लौ 300 वर्षों से कभी नहीं बुझी. यही है बाबा का दरबार, जहां लोग अपनी टूटी उम्मीदों को जोड़ने आते हैं, आंखों में आंसू लेकर मन्नतें मांगते हैं और जब मन्नतें पूरी हो जाती हैं, तो वही आंखे श्रद्धा से भीग जाती हैं. यहां न कोई जात देखी जाती है, न मज़हब. हर दिल यहां सिर झुकाने आता है. यह वो दरबार है जहां बांटे नहीं जाते लोग बल्कि जोड़े जाते हैं.
प्रसाद में मिलती हैं ये चीजें
मदिरा और बताशा यहां का प्रसाद है. यह प्रसाद नहीं, भावनाओं का प्रतीक है. हर घूंट में श्रद्धा है, हर स्वाद में परंपरा की मिठास।
वक़्त गवाह है कि कभी यहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. लेकिन अब, जब समाज जागा, तो बाबा का आंगन भी हर मां, बहन, बेटी के लिए खुल गया. आठ-दस वर्षों से अब वो भी बाबा के चरणों में अपनी दुआएँ रख रही हैं. लेकिन, इस आस्था की राह आज भी अधूरी है.
नहर के बाद खेतों की पगडंडी पर चलकर जाना पड़ता है. बारिश में यह पगडंडी कीचड़ बन जाती है, गर्मी में तपती ज़मीन और ऐसे में सवाल उठता है—क्या सच्चे मन से की गई पूजा के इस पावन स्थल तक एक पक्की सड़क पहुँचना भी मन्नत की तरह कठिन होना चाहिए?तीन सौ वर्षों की परंपरा, लाखों लोगों की आस्था और फिर भी आज तक विकास की एक किरण वहाँ नहीं पहुँची. अब समय आ गया है. बाबा के दरबार में सिर झुकाने वाले हर भक्त की यही पुकार है—सरकार सुनें, रास्ता बने. ताकि कोई माँ अपनी मन्नत लेकर ठोकरें खाते हुए न आए, कोई बुज़ुर्ग अपने कांपते कदमों से खेतों की पगडंडी पर गिर न जाए.
The News Post का संदेश है----- चलो, मिलकर एक ऐसा रास्ता बनाएं… जो सिर्फ़ पगडंडी न हो, बल्कि श्रद्धा से सम्मान तक की सीधी डगर हो.
रिपोर्ट: नंद किशोर मंडल/पाकुड़
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