धनबाद(DHANBAD): आज के नेताओं में इस बात की होड़ मची हुई है कि कौन कितना सुरक्षा घेरे में रह सकता है. जो जितना सुरक्षा घेरे में रहता है, वह अपने को उतना बड़ा नेता मानता है. लेकिन झारखंड में एक ऐसे कद्दावर और चर्चित विधायक रहे , जो ना कभी बॉडीगार्ड लिया, ना कभी चार पहिया गाड़ी ली और ना कभी किसी सवाल पर पीछे हेट. मंत्री पद को भी हंसते हुए ठुकरा दिया. वाहन के नाम पर सिर्फ उनके पास एक बुलेट मोटरसाइकिल थी. उसे भी वह खुद नहीं चलाते थे. जब 90 के दशक में बिहार में लालू प्रसाद का एक छत्र राज था ,वह मुख्यमंत्री थे, तो इस विधायक को उन्होंने मंत्री पद ऑफर कर दिया था. जिसे हंसते हुए यह कहकर टाल दिया कि हम जाति से ब्राह्मण हैं, विचार से वामपंथी हैं, जिस घर में जाएंगे वहीं दो वक्त का भोजन मिल जाएगा. उन्होंने किसी दूसरे को धनबाद से ही मंत्री बनाने की सलाह दी, लेकिन खुद मंत्री नहीं बने. यह अलग बात है कि इस कद्दावर विधायक की 14 अप्रैल 2000 को गोविंदपुर- निरसा के बीच देवली में सड़क पर गोली मारकर हत्या कर दी गई.
हत्या के बाद तो उबाल पड़ा था धनबाद
इस विधायक का नाम था गुरुदास चटर्जी, इस विधायक की हत्या के बाद धनबाद उबल पड़ा था. जीटी रोड पर हुजूम जुट गया था. उस समय धनबाद के एसपी अनिल पलटा थे. गुरदास चटर्जी की हत्या की सूचना पर वह घटनास्थल पर पहुंचे और छानबीन शुरू की. फिर गिरफ्तारियां की गई. स्थिति को सामान्य करने में पुलिस को कड़ी मेहनत करनी पड़ी थी. गुरदास चटर्जी 1990, 1995 और 2000 में निरसा विधानसभा से विधायक चुने गए थे. ईसीएल के छोटे से आवास में वह रहते थे. सुबह उनके घर सैकड़ो लोगों की भीड़ जुटती थी. इस भीड़ में किसी कोने में वह बैठे मिल जाते थे. लोगों की समस्याएं सुन, उनका निदान ढूंढना उनके रोज की दिनचर्या थी. जिस समय उनकी हत्या हुई, उस समय उनके बेटे (फिलहाल निरसा के विधायक) अरुण चटर्जी कोलकाता में पढ़ाई करते थे.
विधायक अरुप चटर्जी की राजनीति में आने की नहीं थी ईच्छा
राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन पिता की हत्या के बाद वह निरसा आए ,फिर भी राजनीति में जाने की उनकी इच्छा नहीं थी. लेकिन पूर्व सांसद एके राय के दबाव में उन्होंने राजनीति स्वीकार की और फिर विधायक की कुर्सी तक पहुंचे. 14 अप्रैल बंगालियों का पोयला वैशाख नव वर्ष होता है. उसी दिन गुरदास चटर्जी की हत्या कर दी गई. गुरदास चटर्जी धनबाद से निरसा जा रहे थे कि देवली के पास शूटरों ने उनकी हत्या कर दी. पूर्व सांसद ए के राय की तरह सादा जीवन व्यतीत करने वाले इस विधायक ने कभी किसी को नाराज नहीं किया. उनके पास जो भी गया, चाहे जिस भी दल का हो ,उसकी मदद की. अधिकारी भी गुरदास चटर्जी का नाम सुनकर हड़कते थे. क्योंकि कभी भी उन्होंने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. यह अलग बात है कि राजनीति में आने के पहले वह ईसीएल में वह नौकरी करते थे. लेकिन एक गोलीकांड में वह जेल चले गए और जेल से जब बाहर निकले तो नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पूरी तरह से राजनीति में आ गए. राजनीति में आने के बाद तो अंतिम सांस तक कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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