धनबाद(DHANBAD): झारखंड मुक्ति मोर्चा की कार्यकारिणी का गठन हो गया है. इस समिति में बहुत बातों का ख्याल रखा गया है. इतना तो तय है कि झारखंड में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरा झारखंड मुक्ति मोर्चा अब झारखंड से बाहर निकलने के लिए हर दांव आजमाने के प्रयास में है. सभी मंत्री, विधायकों को भी जगह दी गई है. तो शिबू सोरेन परिवार के लोगों को भी जगह मिली है. उम्मीद थी कि विधायक कल्पना सोरेन को कोई बड़ा पद मिल सकता है, लेकिन वह कार्यकारिणी सदस्य बनाई गई है. इसी तरह विधायक बसंत सोरेन को भी कार्यकारिणी का सदस्य ही बनाया गया है. 2024 के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी बनने में सफल रहा है. इसके बाद तो कई मौकों पर ऐसा देखा गया है कि पार्टी अब झारखंड से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है.
बिहार के चुनाव में भी पार्टी मांग रही हिस्सेदारी
इसी साल बिहार विधानसभा का चुनाव होना है. झारखंड मुक्ति मोर्चा बिहार में भी 12 सीटों पर दावा करने की रणनीति बना रहा है. यह अलग बात है कि समझौते में कितनी सीटें मिलेगी,इस पर सबकुछ निर्भर करेगा. सरकार में शामिल पार्टी के मंत्री, सांसद और विधायक भी कार्यकारिणी के सदस्य बनाए गए है. संगठन में चार लोगों को सचिव की जिम्मेदारी दी गई है. कार्यकारिणी में 40 नेताओं को जगह मिली है. कल्पना सोरेन और बसंत सोरेन को कोई पद नहीं देकर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने हर तरह की आवाज को बंद करने का सफल प्रयास किया है. शिबू सोरेन को संस्थापक संरक्षण बनाया गया है. हेमंत सोरेन अध्यक्ष है ही, शिबू सोरेन की पत्नी रूपा सोरेन को पार्टी में उपाध्यक्ष का पद दिया गया है.
देखिये -2014 -2019 और 2024 का चुनाव परिणाम
2014 -2019 और 2024 का चुनाव परिणाम देखा जाये तो 2024 में हेमंत सोरेन झारखंड में बड़े नेता के रूप में उभरे है. 2014 में विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस का झामुमो से गठबंधन नहीं हुआ था. तब कांग्रेस एक भी आदिवासी आरक्षित सीट जीत नहीं पाई थी. 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का झारखंड मुक्ति मोर्चा से गठबंधन हुआ तो कांग्रेस को लाभ मिला. भाजपा केवल दो आदिवासी आरक्षित सीटों पर सिमट गई तो कांग्रेस 0 से 6 पर पहुंच गई. आंकड़े के मुताबिक कांग्रेस ने 2019 के चुनाव में मनिका, लोहरदगा, सिमडेगा, कोलेबिरा, खिचरी और जगन्नाथपुर आदिवासी सुरक्षित सीट जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. गठबंधन का लाभ झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी हुआ. 28 आदिवासी सीटों में से 19 पर झामुमो ने कब्जा जमाया. बाबूलाल मरांडी की पार्टी से सिर्फ बंधु तिर्की मांडर सीट से चुनाव जीत सके थे.
2024 में तो गठबंधन का हर दांव सफल रहा
2024 के चुनाव में तो बात ही कुछ अलग हुई. 2024 की बात की जाए तो आदिवासी आरक्षित सीटों से भाजपा पूरी तरह से लगभग साफ हो गई. भाजपा से केवल पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन आदिवासी सुरक्षित सीट सरायकेला से जीत सके. फिलहाल भाजपा के पास सिर्फ दो आदिवासी विधायक चंपई सोरेन और बाबूलाल मरांडी है. झारखंड में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी का उत्साह पार्टी में तो है लेकिन नेतृत्व फूंक -फूंक कर कदम बढ़ा रहा है. कार्यकारिणी के गठन इसका उदहारण हो सकता है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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