सीडी प्रकरण में डॉ अजय बरी—अधिवक्ताओं और नेताओं की रही बल्ले बल्ले, न्यायालय, जनता औऱ पत्रकारों का समय हुआ बर्बाद, नतीजा ढाक के तीन पात,क्या महज चुनावी स्टंट था?
2011 के चर्चित सीडी प्रकरण मामले में रांची विशेष न्यायालय ने पूर्व सांसद सह कांग्रेस नेता डॉ अजय कुमार को बरी कर दिया. ये खबर तो सबको मिल ही गई है.लेकिन क्या इस प्रकरण को हम एक छलावे के तौर पर देखें जो महज चुनाव को प्रभावित करने के लिए या उससे लाभ लेने के लिए किया गया? आखिर सवाल क्यों न उठे, क्योंकि अगर नतीजा ढाक के तीन पात रहा तो मामला लाया ही क्यों गया था? इस तरह के प्रकरण के माध्यम से नेता और मामले के अधिवक्ता जरूर सुर्खियों में रहे लेकिन समय आखिर किसका नष्ट हुआ, न्यायालय का, जनता का और पत्रकारों का.सही बात है या नहीं.आईए आपको पूरा मामला समझाते और याद दिलाते हैं और तब बात समझ आएगी कि ये मामला क्यों सवाल खड़े कर रहा है.
फ़ोटो- फेसबुक
2011 से चल रहा है सीडी प्रकरण मामला—डॉ अजय पर लगे थे नक्सली समर से सांठ गांठ रखने औऱ सहयोग के आरोप, बातचीत की सीडी जारी की थी सरयू राय औऱ दिनेशानंद ने
जुलाई 2011 में दिनेशानंद गोस्वामी और सरयू राय ने डॉ अजय कुमार पर नक्सली समर से सांठ गांठ रखने औऱ सहयोग लेने का आरोप लगाते हुए साकची थाने में मामला दर्ज कराया था.साथ ही सरयू राय और दिनेशानंद गोस्वामी ने कथित तौर पर डॉ अजय औऱ नक्सली समर के बीच की बातचीत की सीडी जारी की थी.मामला काफी तूल पकड़ने लगा था क्योंकि तब डॉ अजय कुमार झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी (सांसद पद)थे. वहीं भाजपा के दिनेशानंद गोस्वामी भाजपा के उम्मीदवार थे. अर्जुन मुंडा के सांसद पद से इस्तीफा देने के बाद सीट खाली हुई थी और उपचुनाव होनेवाले थे.
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डॉ अजय ने भी सवाल उठाया था और कर दिया था केस
मामला सिर्फ डॉ अजय कुमार पर केस करने तक सीमित नहीं रहा. डॉ अजय कुमार ने भी सवाल उठाया कि आखिर किसकी इजाजत से उनके फोन की टैंपिंग की गई. नहले पर बड़ा दहला मारते हुए डॉ अजय कुमार ने कानून का हवाला देते हुए सीडी पर सवाल खड़े कर दिए जो मीडिया में सुर्खियां बटोरता रहा.
सीआईडी ने की थी जांच, साक्ष्य के अभाव बताकर क्लोज कर दिया, लेकिन सीजेएम ने ले लिया था संज्ञान
मामले में सीआईडी ने दोनों प्राथमिकी की जांच की और साक्ष्य का अभाव बताते हुए इसे क्लोज करके न्यायालय को सुपुर्द कर दिया. लेकिन सीजेएम ने दोनों ही मामले का संज्ञान ले लिया. इसके बाद दोनों ही मुकदमों की तारीखें पड़ती रहीं. कोर्ट में हाजिरी लगती रही. बड़े बड़े नेता कोर्ट आते रहे, मीडिया में सुर्खियां अधिवक्ता औऱ नेता बटोरते रहे.बाद में मामला रांची में विशेष न्यायालय के अधीन आय़ा.डॉ अजय पर जो आरोप वाला मामला था उसमें न तो दिनेशानंद औऱ न ही सरयू राय ने गवाही दी.इससे इस मुकदमे में डॉ अजय बरी हो गए. उधर डॉ अजय कुमार की दर्ज प्राथमिकी के मामले में सीआईडी की तरफ से गवाही नहीं हुई.हालांकि डॉ अजय की गवाही हुई, लेकिन पर्याप्त साक्ष्य न मिलने से दिनेशानंद औऱ सरयू राय उस मामले में बरी हो गए।
सिस्टम का बना मज़ाक..पुलिस और सीआईडी पर भी सवाल
सोचिए अगर आम आदमी इस मामले से जुड़ा होता तो पुलिस /सीआईडी पूरी मेहनत से दोष निकालती लेकिन मामला हाई प्रोफाईल था तो बच बच कर औऱ फूंक फूंक कर कदम बढ़ाती रही.केस क्लोज कर दिया , वो तो न्यायालय ने संज्ञान लिया वरना शायद आपसी सहयोग(नेता-पुलिस) पहले ही हो चुका था, चुनाव में फायदा लेने की कोशिश हो चुकी थी औऱ फिर मुकदमे में दिलचस्पी खत्म हो गई थी.. सवाल तो बहुत हैं. क्या जनता, पत्रकार औऱ न्यायालय का वक्त बर्बाद नहीं हुआ? आखिर चुनाव के पहले एक दूसरे पर दोषारोपण करते नेता न्यायालय में गवाही देने में क्यों पीछे रहे? तो क्या सब कुछ सुनियोजित था? इस पूरे प्रकरण पर जनता खुद को ठगा सा महसूस करती है क्योंकि हमेशा की तरह उसकी भावनाओं के साथ खेल कर चुनावी लाभ लेने की कोशिश की गई.ये प्रकरण इस बात का गवाह है कि चुनाव से पहले आऱोप लगाना औऱ मुकदमा न्यायालय में आने पर शांत हो जाना ये सब एक खेल है तो क्या इस देश के सिस्टम में ये स्टंट इस तरह घुस चुका है कि न्यायालय को भी खेल का माध्यम बनाया जा रहा है?ये सोचनेवाली बात है.
रिपोर्ट - अन्नी अमृता , जमशेदपुर

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