रांची(RANCHI): झारखंड में नौकरी के नाम पर बड़ा खेल होता है. यह बात सदन से सड़क तक गूँजती है. हमेशा यह आरोप लगा है कि अधिकारी फर्जी दस्तावेज के भरोसे बाहरी को नौकरी दे देते है. ऐसे में अब एक मामला धनबाद से सामने आया जिसके बाद बाहरी को नौकरी देने की बात को बल मिल गया. और तस्वीर साफ हो गई की कैसे झारखंड में बाहर से लोग आकर यहां की नौकरी पर डंक मार कर बैठ जाते है. ऐसे में अब सवाल यह भी है कि आखिर कितने लोगों ने फर्जी दस्तावेज के आधार पर खुद को झारखंडी बता कर नौकरी लिया. क्या इसका आकडा सरकार के पास मौजूद है?          

इसपर बात करें तो झारखंड में फिलहाल एक धनबाद के राजगंज की दरोगा आलिशा कुमारी चर्चा में है. यह मूल रूप से बिहार के नवादा की रहने वाली है. लेकिन जब नौकरी की बात आई तो खुद को झारखंड के जामताड़ा का स्थाई निवासी बताया और इसी पते पर जाति प्रमाण पत्र भी बन गया. जिसके बाद नौकरी लगी और लंबे समय से पद पर बनी हुई है. लेकिन इनके जाति प्रमाण पत्र के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर हुई और जांच हुआ तो खुलासा ऐसे सामने आया कि अब इनकी कुर्सी  जाने का खतरा बना साथ ही कई सवाल को जन्म दे गया.

चलिए पूरा मामला समझिए धनबाद के राजगंज की थानेदार पर फर्जी दस्तावेज के आधार पर  प्रमाण पत्र   हासिल  करने का आरोप लगा. अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग से सम्बद्ध जाति छानबीन समिति ने एक पत्र जारी किया है. मामले की छानबीन में पता चला है कि अलीशा कुमारी झारखंड की निवासी नहीं है. वह बिहार के नवादा की रहने वाली है.  

अब इस जांच के बाद एक्शन की तलवार लटक गई है. बोकारो के किसी प्रदीप कुमार ने साल 2023 में शिकायत की थी कि अलीशा कुमारी का जाति प्रमाण पत्र फर्जी है. शिकायत के आलोक और जांच के बाद अंचल अधिकारी, डुमरी द्वारा निर्गत जाति प्रमाण पत्र को रद्द करने का निर्णय लिया गया है. इधर, अलीशा कुमारी का दावा है कि उन्हें अभी तक इस संबंध में कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है. उनका दावा है कि प्रमाण पत्र सही है. प्रदीप कुमार का आरोप था कि अलीशा कुमारी ने झारखंड में बनिया जाति का प्रमाण पत्र दिखाकर पुलिस में नियुक्ति पाई है. आरोप के मद्देनजर समिति ने जांच कराई. उसके बाद यह खुलासा हुआ है. अब देखना है कि इस मामले में आगे-आगे होता है क्या? 

सूत्रों के अनुसार 25 अप्रैल 2025 की बैठक में प्रदीप कुमार रे और अलीशा कुमारी ने अपना-अपना पक्ष रखा था. 23 मई  2025 की बैठक में अलीशा कुमारी और उनके पक्ष के दस्तावेजों व मौखिक उत्तर की समीक्षा की गई. 2 जुलाई 25 को हुई अंतिम बैठक में केवल प्रदीप कुमार रे उपस्थित थे. विजिलेंस सेल एवं अंचल अधिकारी की जांच प्रतिवेदन और पक्षों को सुनने के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि अलीशा कुमारी द्वारा जाति प्रमाण पत्र के लिए दिए गए शपथ पत्र व दस्तावेज में कई विसंगतियां थी. इनमें विरोधाभास पाया गया. इस आधार पर समिति ने अलीशा कुमारी का पिछड़ी जाति का प्रमाण पत्र निरस्त करने का निर्णय लिया है. शिकायतकर्ता ने अलीशा कुमारी द्वारा फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे आरक्षण का लाभ लेने का आरोप लगाया था. 

पढ़िए-कहां से निर्गत किया गया था जाति प्रमाण पत्र 

विवादित प्रमाण पत्र अलीशा कुमारी को तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी, डुमरी द्वारा निर्गत किया गया था. इसमें उन्हें बनिया (पिछड़ा वर्ग-2) के रूप में दर्शाया गया था. जबकि जांच में सामने आया कि अलीशा का परिवार जामताड़ा पंचायत, डुमरी, गिरिडीह का स्थायी निवासी नहीं है. जांच के दौरान यह भी तथ्य सामने आया कि अलीशा के पिता ने वर्ष 1986 में जामताड़ा क्षेत्र में जमीन खरीदी थी, जिस पर दस वर्ष पूर्व मकान बना और उसे किराए पर दे दिया गया. हालांकि परिवार खुद उस स्थान पर कभी स्थायी रूप से निवास नहीं किया. जाति प्रमाण पत्र निर्गत कराने के लिए अलीशा कुमारी द्वारा स्वयं-घोषित शपथ-पत्र और पुराने दस्तावेजों का सहारा लिया गया था, जिन्हें सत्यापित करने के बाद समिति ने प्रमाण पत्र को अमान्य पाया.