धनबाद (DHANBAD) : शुक्रवार को झारखंड का घाटशिला राजनीति का मुख्य केंद्र रहा. दिनभर हलचल रही. आखिर रहे भी क्यों नहीं, घाटशिला उपचुनाव भाजपा के लिए लिटमस टेस्ट है ,तो महागठबंधन के लिए भी कुछ इसी  तरह का है. आज भाजपा की ओर से बाबूलाल सोरेन ने नामांकन किया तो झामुमो  की ओर से सोमेश सोरेन  ने नामांकन किया.  दोनों ओर से नामांकन के दौरान "हैवीवेट" मौजूद रहे.  घाटशिला उपचुनाव   में दोनों दलों के बीच जबरदस्त चुनावी मुकाबला देखने को मिलेगा. यह चुनाव न केवल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन बल्कि सांसद विद्युत वरण महतो  के लिए भी कम चुनौती नहीं है. 

दोनों उम्मीदवार अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए चुनावी मैदान में है. सोमेश सोरेन के पिता रामदास सोरेन का 15 अगस्त को बीमारी की वजह से निधन हो गया था. उसके बाद घाटशिला उपचुनाव हो रहा है.  यह उपचुनाव भाजपा की रणनीति और चंपई सोरेन की भी अग्नि परीक्षा लेगा. लोग बताते हैं कि भाजपा ने परंपरा से हटते हुए एक ही एक ही व्यक्ति को घाटशिला से दूसरी बार उम्मीदवार बनाया है. 

लोग बताते हैं कि भाजपा घाटशिला से अब तक उम्मीदवार रिपीट नहीं की थी.  भाजपा की सोच रही होगी कि चंपाई सोरेन की एक बार और परीक्षा हो जाए और आदिवासी मतदाताओं को इससे लुभाया जा सके. भाजपा ने इस सीट पर 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है. दरअसल, अगर घाटशिला उपचुनाव बीजेपी हारती है, तो चंपई सोरेन के साथ-साथ सांसद विद्युत वरण महतो के राजनीतिक सेहत पर भी असर पड़ सकता है. 

पिछले विधानसभा चुनाव में कोल्हान में सिर्फ एक आदिवासी आरक्षित सीट भाजपा के हाथ लगी थी.  वह सीट भी चंपाई  सोरेन ने जीती थी.  दूसरी ओर झामुमो  के लिए यह चुनाव एक तरह से उसका रिपोर्ट कार्ड होगा.  घाटशिला की जनता फिर  झामुमो पर भरोसा करती है अथवा नहीं, यह तो चुनाव परिणाम बताएगा , लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चुनाव में पूरी ताकत झोंकने के संकेत दे दिए है.  जानकार बताते हैं कि घाटशिला का उपचुनाव केवल एक सीट नहीं होगा, बल्कि राज्य की दिशा भी यह उपचुनाव तय कर सकता है.  यदि भाजपा जीतती  है तो चंपाई  सोरेन का कद बढ़ेगा और हेमंत सोरेन की सेहत पर असर पड़ेगा. वहीं अगर झामुमो  की जीत होती है तो हेमंत सोरेन की नेतृत्व क्षमता का प्रमाण और विस्तार मिलेगा. यही वजह है कि हेमंत सोरेन की सीट को लेकर गंभीर है. 

रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो