देवघर (DEOGHAR): देवघर के बाबा बैद्यनाथ मंदिर में कई ऐसी मान्यताएं है जो इसे सबसे अलग पहचान बना देती है. जहाँ माता सती का हृदय गिरा था वही ज्योर्तिलिंग की स्थापना होने से यह एक शक्तिपीठ भी है. पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से बैद्यनाथ धाम उत्तर भारत का एक मात्र ज्योर्तिलिंग है. यहाँ पूजा अर्चना करने से ज्योर्तिलिंग के साथ साथ शक्तिपीठ का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है. यही कारण है कि यहाँ सालों भर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. खासकर सावन मास में तो यहाँ श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है. बैद्यनाथ मंदिर प्रांगण में मुख्य मंदिर सहित 22 मंदिर स्थापित है. सभी मंदिरों की अपनी अपनी अलग कहानी है. उसी में से एक है लक्ष्मी नारायण मंदिर. जो मंदिर परिसर के ईशानकोण में स्थित है. 

विश्वकर्मा ने आधा अधूरा ही निर्माण किया था इस मंदिर का

जानकर बताते है ही यहाँ सभी मंदिर का निर्माण रावण के कहने पर खुद विश्वकर्मा ने किया था. तब विश्वकर्मा जी को सवेरा होने से पहले सभी मंदिरों का निर्माण करने का आग्रह किया गया. विश्वकर्मा ने एक रात मे 21 मंदिर का निर्माण किया जिसमें सभी मंदिरों पर गुम्बद बनाया. लेकिन जब 22 वां लक्ष्मी नारायण का मंदिर का निर्माण करने लगे तो उनको अपने कार्यो पर गुमान होने लगा की इस सृष्टि में उनके ऐसा निर्माता कोई दूसरा नहीं हो सकता. जानकार बताते है कि जब विश्वकर्मा जी को अपने आप पर गुमान होने लगा तभी पक्षी की आवाज़ सुनाई दी और वे इस मंदिर में बिना गुम्बद बनाये अधूरा छोड़कर वापस लौट गए. तभी से यह मंदिर गुम्बद विहीन है.

भगवान विष्णु का ऐसा विग्रह इस मंदिर में स्थापित है जिसमें पूरा पृथ्वी और जीवन समाया हुआ है

देवघर के बाबा बैद्यनाथ मंदिर परिसर स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु के विग्रह के साथ चार देवियों -तिरोमती, वसोमती, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती का विग्रह भी यहाँ स्थापित है जिनमें वैष्णव मान्यताओं की झलक स्पष्ट देखी जा सकती है. इतना ही नहीं भगवान विष्णु के विग्रह के ऊपरी हिस्से में स्वर्ग को दर्शाया गया है जबकि श्रीचरण के नीचे के हिस्से को पाताल लोक बताया गया है. जानकारों की मानें तो पूरी सृष्टि को एक विग्रह के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है. यह विशेषता इस स्थल की वैष्णव मान्यताओं को दर्शाती है.

 

रिपोर्ट: रितुराज सिन्हा