टीएनपी डेस्क(TNP DESK):आज भले ही हमारा देश चांद पर पहुंच चुका है लेकिन आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसी कुरुतियां है जिसे समाज के लोग मानते है लेकिन झारखंड राज्य में डायन प्रथा आज तक ख़तम नहीं हुआ है.इसकी वजह से जाने कितनी महिलाओं ने अपना दम तोड़ दिया है लेकिन फिर भी डायन-बिसाही प्रथा पूरी तरह से झारखंड से समाप्त नहीं हुआ है. झारखंड की छुटनी देवी ऐसी महिला है जिन्होंने इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और एक लंबी लडाई लड़ी.इनके लंबे संघर्षों को अब बॉलीवुड बड़े पर्दे पर दिखाने जा रहे है.

लंबे संघर्षों को दिखाया जाएगा

आदिवासी इलाकों में फैली कुप्रथा डायन-बिसाही के खिलाफ पिछले कई दशकों से संघर्ष का नाम पद्मश्री छुटनी महतो अब बड़े पर्दे पर नजर आएंगी. उनके वास्तविक जीवन, साहस, पीड़ा और जुझारू जज्बे पर आधारित एक प्रभावशाली फिल्म का निर्माण शुरू होने जा रहा है. यह फिल्म एक ऐसी महिला की कहानी होगी जिसने सामाजिक बहिष्कार, अत्याचार और मौत जैसी धमकियों का सामना करते हुए हजारों महिलाओं को इस अमानवीय प्रथा से बचाया.

कौन है छुटनी देवी

छुटनी महतो खुद डायन घोषित की गई थीं, प्रताड़ना झेली, परिवार से दूर की गईं लेकिन अपने संघर्ष को जारी रखा.गाँव से बाहर कर दी गई लेकिन टूटने के बजाय उन्होंने इस कुप्रथा को जड़ से खत्म करने का संकल्प लिया.

25 से 30 साल के संघर्षों का मिला नतीजा

 छुटनी देवी 25 से 30 साल तक डायन कुप्रथा के खिलाफ संघर्ष किया, लड़ाई लड़ी और लोगों को इसके प्रति जागरूक किया.फिल्म में उनके संघर्ष की तीन प्रमुख परतों को दिखाया जाएगा.निर्माताओं का कहना है कि यह फिल्म केवल एक कहानी नहीं, बल्कि समाज को झकझोरने वाली सच्चाई होगी, जो बताएगी कि कैसे अंधविश्वास किसी की जिंदगी नष्ट कर देता है.

सूत्रों की माने तो कहानी को पूरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया जाएगा.यह जीवनी आधारित फिल्म समाज में बदलाव की प्रेरणा बनेगी और महिलाओं के अधिकार, सम्मान और सुरक्षा के मुद्दों को मजबूती से उठाएगी.