Ranchi-खूंटी के अखाड़े से एक बार फिर से केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को मैदान में उतार कर भाजपा ने सियासी गलियारों में चल रही तमाम अकटलों पर विराम लगा दिया है और इसके साथ ही अर्जुन मुंडा के सामने अग्नि परीक्षा के गुजरने की चुनौती खड़ी हो गयी है. इसका कारण है पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजे, जब कांग्रेस के कालीचरण मुंडा ने उनकी जीत के आगे एक मजबूत दीवार खड़ी कर दी थी और अर्जुन मुंडा किसी तरह करीबन 1500 मतों से जीत की औपचारिका पूरी करते नजर आये थें.कालीचरण मुंडा के अंदर वह कसक आज भी वर्तमान है. उनका दावा है कि जनता ने तो अपना आशीर्वाद दे दिया था, लेकिन भाजपा ने प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग कर जीत को हार में तब्दील कर दिया. लेकिन खूंटी की जनता इस बार अपना आशीर्वाद दुगना करने वाली है, जीत और हार के बीच का अंतर हजारों में नहीं, लाखों में जाने वाला है.

दयामणि बारला की इंट्री के बावजूद आश्वस्त नजर आते हैं कालीचरण मुंडा

लेकिन कालीचरण के इन दावे के बावजूद दावेदारी पर संशय के बादल तैरते नजर आने लगे हैं और इसका कारण है लोकसभा चुनाव के ठीक पहले झारखंड में जल, जंगल, जमीन की लूट और विस्थापन के खिलाफ पिछले तीस वर्षों से संघर्ष का प्रतीक बन कर सामने आयी दयामणि बारला का इंट्री. यह वही दयामणि बारला हैं, जो पत्थलगड़ी आन्दोलन के दौरान पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ भी खूंटी में सक्रिय दिखी थीं. आदिवासी समाज की हक-हकूक की हुंकार लगा रही थी. आदिवासी समाज की परंपरा और भारतीय संविधान के द्वारा प्रदत अधिकारों का हवाला दे कर पुलिस की कार्रवाई पर प्रश्न चिह्न लगा रही थी. दयामणि बारला को बेहद करीब से जानने वालों का दावा है कि एक बेहद गरीब मुंडा जनजाति परिवार में जन्मी बारला ने जीवन का हर रंग झेला है. खेत में मजदूरी से लेकर ठिकाने के अभाव में रांची रेलवे स्टेशन पर अपनी रात गुजारी है.आज भी वह कल्ब रोड पर अपनी छोटी सी चाय की दुकान चलाती है. बताया जाता है कि बारला की चाय दुकान से अधिक विभिन्न सामाजिक सियासी मुद्दों पर बहस का एक खुला कल्ब है. जहां हर दिन देश और राज्य की सियासत पर गरमा-गरमा बहस होती है. हालांकि दयामणि बारला सब कुछ पार्टी आलाकमान पर छोड़ने की बात करती हैं, लेकिन जिस तरीके पार्टी में इंट्री के बाद वह लगातार दिल्ली की दौड़ लगाती दिख रही हैं. उसके बाद यह दावा किया जाने लगा है कि इस बार उनकी  मंशा खूंटी के अखाड़े से ताल ठोकने की है, हालांकि दूसरी ओर कालीचरण भी अपने टिकट को लेकर बेहद आश्वस्त नजर आते हैं. और इसके साथ ही सब कुछ पार्टी आलाकमान के हाथ छोड़ने की बात करते हैं. अपनी तैयारियों के बारे में कालीचरण का दावा है कि हम जमीन पर काम करने वाले लोग हैं, हमारी तैयारी सालों पर भर चलती है, हमारा हाट बाजार ही हमारा मीटिंग स्थल है, जहां हम अपने समर्थकों के सुख दुख बांटते हैं. चुनाव आते जाते रहते हैं, लेकिन हमारा यह जनसम्पर्क चलता रहता है.

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