दुमका (DUMKA) : आदिवासियों के सर्वांगीण विकास को लेकर 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग झारखंड राज्य बना. देखते ही देखते झारखंड शैशवावस्था काल से युवा झारखंड बन गया. विकास के लिए 25 वर्षों का काल खंड कम नहीं होता, इसके बाबजूद आज जब हम पीछे मुड़कर देखते है तो एक बार यह सोचने पर विवश हो जाते हैं कि क्या इन 25 वर्षों में झारखंड का समुचित विकास हो पाया?

खस्ताहाल है सड़क, खाट के सहारे लाया जाता है बीमार व्यक्ति को

यह तस्वीर झारखंड की उपराजधानी दुमका जिला के शिकारीपाड़ा प्रखंड के जामुगड़िया पंचायत की है. पंचायत का दुधाजोल गांव प्रखंड मुख्यालय से लगभग 5 किलो मीटर दूर है. आजादी के 78 वर्ष बाद या यूं कहें कि अलग झारखंड राज्य बनने के 25 वर्ष बाद भी यहां के ग्रामीण एक अदद पक्की सड़क के लिए तरस रहे है. आलम यह है कि इस सड़क पर पैदल चलना भी मुश्किल है. ग्रामीणों का आरोप है कि सड़क के अभाव में बच्चे विद्यालय जाना नहीं चाहते. सबसे ज्यादा परेशानी प्रसव वेदना से तड़पती महिलाओं को होती है. गांव तक एम्बुलेंस पहुंच नहीं पाता ऐसी स्थिति में खाट के सहारे बीमार और गर्भवती महिलाओं को मुख्य सड़क तक लाना पड़ता है.

सिस्टम ने छोड़ा साथ तो ग्रामीणों ने उठा ली फावड़ा और कुदाल

लगता है रामधारी सिंह दिनकर की कविता "खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़" ग्रामीणों को नई राह दिखाई. तभी तो जब सिस्टम ने साथ छोड़ा तो खुद उठा ली फावड़ा और कुदाल और निकल पड़े सड़क बनाने. सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण जन सड़क निर्माण अभियान से जुड़कर श्रम दान के सहारे सड़क बना रहे है. ग्रामीण कहते है कि उनके पास सड़क निर्माण के लिए रुपया नहीं है, शासन और प्रशासन से गुहार लगाकर थक चुके है. जब हर तरफ से निराशा ही हाथ लगी तब जाकर श्रमदान का निर्णय लिया गया. मेहनत मजदूरी कर जीवकोपार्जन करने वाले ग्रामीण कुछ दिनों तक अपने लिए श्रमदान करेंगे ताकि बच्चे शिक्षा से वंचित न हो, बीमार और गर्भवती महिला को समय पर अस्पताल पहुंचाया जा सके और एक बेहतर भविष्य का सपना साकार हो सके. आज इनके जज्बे की हर तरफ तारीफ हो रही है.

अब जरा इस क्षेत्र की राजनीतिक पृष्ठभूमि को भी समझिए

शिकारीपाड़ा विधान सभा क्षेत्र दुमका लोक सभा क्षेत्र में आता है. दोनों ही सीट एसटी के लिए आरक्षित है. दशकों तक सांसद के रूप में शिबू सोरेन ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 2019 के लोक सभा चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन दुमका के सांसद चुने गए. 2024 के चुनाव में झामुमो ने इस सीट पर फिर से कब्जा जमाया. शिकारीपाड़ा विधान सभा से लगातार 7 टर्म विधायक बनने वाले नलिन सोरेन सांसद चुने गए. संताल परगना की राजनीति में प्रायः सोरेन परिवार का जिक्र होता है. लोग सोरेन परिवार से शिबू सोरेन या हेमंत सोरेन का परिवार  समझते है, लेकिन यहां की राजनीति में एक और सोरेन परिवार है जो राजनीतिक रूप से काफी मजबूत है और वह है नलिन सोरेन का परिवार. शिकारीपाड़ा विधान सभा की जनता ने नलिन सोरेन को लगातार 7 बार विधायक बनाया, 2024 में दुमका लोक सभा क्षेत्र से सांसद चुने गए. गत विधान सभा चुनाव में जनता ने नलिन सोरेन के पुत्र आलोक सोरेन को चुनाव जीता कर विधान सभा भेजा. नलिन सोरेन की पत्नी जायस बेसरा जिला परिषद अध्यक्ष है.

जहां की जनता ने एक परिवार को राजनीतिक रूप से इतना सुदृढ़ बनाया वहां की जनता को श्रमदान से सड़क निर्माण करना पड़ रहा है

सोचने वाली बात है कि जहां की जनता ने एक परिवार को राजनीतिक रूप से मजबूत बनाया, वहां की जनता को एक सड़क भी नसीब नहीं हुआ. पंचायत के मुखिया और ग्राम प्रधान का कहना है कि कई बार जनप्रतिनिधियों को इस समस्या से अवगत कराया गया. हर बार आश्वासन ही मिला. लेकिन सड़क निर्माण की दिशा में कोई सार्थक पहल नहीं किया गया. थक हार कर ग्रामीणों ने श्रमदान से सड़क निर्माण का निर्णय लिया. ग्रामीणों की मांग है कि अपनी मेहनत के बदौलत कच्ची सड़क बना रहे है, काश शासन और प्रशासन इसे पक्की सड़क के रूप में तब्दील कर दे तो समस्या का स्थाई समाधान हो जाता.

कागज पर कलम का हल चलाकर, स्याही से सिंचाई कर आंकड़ों का उत्पादन करना ही है यहां की हकीकत

इस सड़क के बनने में अड़चन किया है इसकी जानकारी नहीं लेकिन अब जबकि झारखंड अपना 25 वाँ स्थापना दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है तो एक बार जरूर यह सवाल उभर कर सामने  आता है कि क्या 25 वर्षों में झारखंड का समुचित विकास हो पाया? शासन और प्रशासन विकास के चाहे लाख दावे करे लेकिन हकीकत यही है कि यहां कागज पर खेती होती है जिसपर कलम का हल चलता है, स्याही से सिंचाई होती है और आंकड़ों का उत्पादन होता है.