पाकुड (PAKUR): सरकार गरीबों और जरूरतमंदों के उत्थान के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. गरीब परिवारों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाएं भी संचालित की जा रही हैं. लेकिन इन योजनाओं की हकीकत ज़मीनी स्तर पर अक्सर कुछ और ही कहानी बयां करती है.

ऐसा ही एक मामला पाकुड़ जिले के तोड़ाई पंचायत अंतर्गत खजूरडांगा गांव से सामने आया है, जहां के जियाउल मोमिन, जो कि एक दिव्यांग व्यक्ति हैं, अब तक सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं.

जियाउल मोमिन बताते हैं कि उन्हें न तो अब तक सरकारी साइकिल मिली है और न ही किसी प्रकार की आवास योजना — चाहे वह प्रधानमंत्री आवास योजना हो या अबुवा आवास योजना. गरीब परिवार से आने वाले जियाउल किसी तरह अपना गुजारा करते हैं.

सरकार की ओर से उन्हें मात्र एक हजार रुपये मासिक सहायता मिलती है, जो उनके लिए ऊंट के मुंह में ज़ीरा साबित हो रहा है. बिना साइकिल के उन्हें कहीं आने-जाने में भारी परेशानी होती है. जियाउल ने प्रशासन और सरकार से साइकिल और आवास योजना के लाभ की मांग की है, ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें.

ग्रामीणों का कहना है कि सरकार की योजनाएं कागज़ पर तो पहुँचती हैं, लेकिन ज़रूरतमंद तक नहीं. ऐसे में सवाल उठता है जब करोड़ों रुपये गरीबों के नाम पर खर्च किए जा रहे हैं, तो फिर जियाउल जैसे असली हकदार अब भी क्यों वंचित हैं?

रिपोर्ट:नंद किशोर मंडल | पाकुड़