Ranchi-आदिवासी समाज का बड़ा चिंतक, प्रख्यात मानव शास्त्री, सोशल एक्टिविस्ट, शिक्षाविद् डॉ. करमा उरांव ने 72 वर्ष की उम्र में मेदांता हॉस्पिटल में अपनी अंतिम सांस ली.

आदिवासी-मूलवासियों के मुद्दों पर प्रखरता के साथ अपनी बात रखते रहे डॉ. करमा उरांव संयुक्त बिहार में बीपीएससी के सदस्य भी रहे थें, हाल के दिनों में अपनी बढ़ती उम्र के साथ उनकी राजनीतिक गतिविधियों में कमी आयी थी, लेकिन बावजूद इसके वह सरना धर्म कोड के सवाल पर पूरी प्रखरता के साथ खड़े थें. उनकी कोशिश इस मुद्दे पर पूरे झारखंड के आदिवासी मूलवासी चितंकों को एक मंच पर खड़ा करने की थी, और  इसी रणनीति के तहत वह लगातार मीटिंग और सभाओं में अपनी शिरकत बनाये रख रहे थें.

बगैर सरना धर्म कोड के आदिवासियों की पहचान को सुरक्षित रखना मुश्किल

उनका मानना था कि बगैर सरना धर्म कोड के पूरे देश में आदिवासियों की सामाजिक पहचान को बचाये रखना मुश्किल होगा. आदिवासियों की एक बड़ी कमजोरी हिन्दू और दूसरे धर्मालम्बियों के समान उनका स्वतंत्र पहचान का नहीं होना है. इस स्वतंत्र पहचान के  अभाव में उन्हे हिन्दु धर्म का हिस्सा समझने की भूल कर दी जाती है, और यही आदिवासी समाज के इस दुर्दशा का कारण है. सरना धर्म कोड आदिवासी समाज के इसी कमजोरी को दूर करेगा और उनकी स्वतंत्र पहचान कायम होगी.

सीएम हेमंत ने जताया शोक

उनके अवसान की खबर सुनते ही सीएम हेमंत ने दुख व्यक्त करते हुए लिखा कि उनका जाना हमारे लिए एक अपूरणीय क्षति है. आदिवासी समाज के उत्थान के लिए हमेशा सजग रहने वाले शिक्षाविद्  डॉ. करमा उरांव से हमे कई राजनीतिक सामाजिक विषयों पर मार्गदर्शन मिलता था. उनका जाना हमारे लिए व्यक्तिगत क्षति है. ईश्वर उनके परिवार को इस दुख को सहने की शक्ति दे.