टीएनपी डेस्क(TNP DESK):हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि, यानी देवउठनी एकादशी के एक दिन बाद तुलसी विवाह किया जाता है.जहा माता तुलसी और भगवान विष्णु का विवाह करने की परंपरा है.इसके लिए महिलाएं दिन भर उपवास करती हैं और शाम होने के बाद विवाह संपन्न किया जाता है.जिसमे पूजा पाठ धर्म और निष्ठा के साथ किया जाता है.इस साल तुलसी विवाह 1 नवंबर यानी शनिवार के दिन है.ऐसे में चलिए जान लेते है भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी के साथ रहते हुए माता तुलसी से विवाह क्यों किया था.
क्यों भगवान विष्णु को करनी पड़ी थी माता तुलसी से शादी
आप सभी को पता होगा कि श्री हरि विष्णु माता लक्ष्मी के स्वामी है. ऐसे में आखिर क्यों तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी की शादी भगवान विष्णु से कराई जाती है तो इसके पीछे एक पौराणिक कथा काफ़ी प्रचलित है जिसके अनुसर बृंदा नाम की एक धर्मनिष्ठ और पतिव्रता स्त्री थी.जिनकी भक्ति से सारे देवी देवता प्रसन्न रहते थे. एक दिन भगवान विष्णु ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर तुलसी रूप में उनसे विवाह करने का वचन दिया.यही विवाह हम अब तक तुलसी विवाह के नाम से जानते है.जो भक्ति प्रेम और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है.
जाने तुलसी विवाह की पौराणिक कथा
कथा की माने तो वृन्दा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी जिसका विवाह असुर राज जालंधर नाम के क्रूर राक्षस से हुआ था.जालंधर वृंदा के पतिव्रता और भक्ति की भावना से इतना बलवान हो गया कि उसको मारना भगवान के उनकी बस में नहीं था.वह देवताओं के ऊपर अत्याचार करता था.एक दिन भगवान विष्णु ने देवी बृंदा के पतिव्रता को भंग करने का फैसला लिया और उसके पति जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंच गए.भगवान विष्णु को जालंधर के रूप में देखकर वृन्दा भ्रमित हो गयी.जिसकी वजह से उसके पतिव्रता भंग हो गया और जालंधर का देवताओं ने वध कर दिया.
हर साल किया जाता है तुलसी विवाह
इस बात से देवी वृन्दा इतनी व्याकुल हो गई कि इनके तप से एक दिव्या चमत्कारी पौधा धरती से उत्पन्न हुआ.जिसे तुलसी का पौधा कहा जाता है. भगवान विष्णु ने देवी वृन्दा के तप और भक्ति को देखते हुए कहा कि आज से वृंदा की तुलसी के रूप में पूजा जाएगी. बिना तुलसी के भगवान विष्णु की पूजा सफल नहीं मानी जाएगी.वही भगवान विष्णु ने माता तुलसी से शालिग्राम रूप में विवाह करने का वचन भी दिया. जिसकी वजह से हर साल तुलसी विवाह किया जाता है.

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