धनबाद(DHANBAD):  पूरे एशिया में झंडा गाड़ने वाली धनबाद की  रोपवे व्यवस्था अब कबाड़ी के हाथों बिक  जाएंगी.  एक तरफ से कोयला और दूसरे तरफ से बालू की आपूर्ति करने वाला यह रोपवे  अब नीलाम हो  जाएगा.  दो टन  की क्षमता वाली डोली को अब उतार लिया गया है.  हालांकि अभी भी स्ट्रक्चर के रूप में बड़ी संपत्ति खड़ी है, लेकिन धीरे-धीरे यह  सब भी अब खत्म हो जाएगा.  यह रोपवे  15 किलोमीटर लंबा था.  इस रोपवे  के साथ बहुत  इतिहास जुडी हुई है.   लेकिन अब यह खत्म हो जाएंगे.  जीतपुर कोलियरी से उत्पादित कोयला कोल् वाशरी  तक ले जाने के लिए एकमात्र विकल्प के रूप में रोपवे  को चुना गया था.  क्योंकि उस समय सड़क मार्ग होकर कोयला ट्रांसपोर्टिंग करना मुमकिन नहीं था. 

 इस रोपवे  द्वारा ही जीतपुर से उत्पादित कोयला चासनाला  कोल् वाशरी   में धुलाई  के लिए आपूर्ति किया जाता रहा है.  जानकार  बताते हैं कि इस्को  ने भी जीतपुर  कोलियरी  का उत्पादित कोयला चासनाला कोल्वाशरी  में धुलाई करने के बाद बर्नपुर यानी पश्चिम बंगाल अपने स्टील प्लांट में भेजने के लिए 75 किलोमीटर लम्बा रोपवे  बनाया था.  जीतपुर चासनाला  का कोयला धुलाई के बाद रोप वे  से बर्नपुर  स्टील प्लांट के लिए भेजा जाता था.  2006 में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड ने  इस्को  का अधिग्रहण कर लिया था.  इधर अब सेल की 109 साल पुरानी जीतपुर खदान भी  इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है. 1916 में यह कोलियरी खोली गई थी. 1920 में कोयले का प्रोडक्शन शुरू हुआ. उस समय कोलियरी में लगभग 10000 मजदूर कार्यरत थे. 

इस कोलियरी को एशिया महादेश में सबसे आधुनिक खदान की श्रेणी में रखा गया था. लेकिन समय ने ऐसा पलटा खाया की कोलियरी को परमानेंट बंद कर दिया गया है. हालांकि यह कोलियरी अप्रैल 2024 से ही बंद थी. लेकिन आवश्यक सेवाएं जारी थी. लेकिन अब सभी सेवाओं को बंद कर दिया गया है. कारण बताया गया है कि खदान का पानी भरने के कारण जीतपुर कोलियरी को बंद कर दिया गया है. इस कोलियरी में पानी का रिसाव लगातार हो रहा था. डीजीएमएस और सिंफर के आदेश पर सेल निदेशक ने जीतपुर कोलियरी को अप्रैल 2024 से ही मजदूरों को कोलियरी के भीतर नहीं भेजने का निर्देश दिया था. इस कोलियरी से स्टील ग्रेड का कीमती कोयला निकलता था. कोलियरी की बंदी का असर आसपास के बाजार पर भी निश्चित रूप से पड़ेगा. 

रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो