धनबाद (DHANBAD): झारखंड में कीमती कोयला उपलब्ध है. फिलहाल झारखंड में काम कर रही कोल इंडिया की सहायक कंपनियों को भूमिगत खदानों से उत्पादन में कोई इंटरेस्ट नहीं है. भूमिगत खदानों से कोयला निकालना महंगा साबित होता है. इस वजह से कोलियारियां बंद होती जा रही है. आउटसोर्सिंग कंपनियों को लगाकर पोखरिया खदानों से उत्पादन की प्रथा चल निकली है. ऐसे में झारखंड में कई अंडरग्राउंड कोलियरी बंद है. एक यह भी योजना निकली है कि निजी कंपनियों के साथ एकरारनामा कर अंडरग्राउंड कोलियरियों को चालू कराया जाए. कोल इंडिया में सबसे पहले धनबाद से ही इसकी शुरुआत हुई है. 

अब पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की तैयारी 

लेकिन इधर, जानकारी मिली है कि अब परित्यक्त कोलियरियों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा. झारखंड सरकार इस दिशा में पहल की शुरुआत की है. यह पहल कितना कारगर होगा, कितनी दूर तक आगे बढ़ेगा, यह अपने आप में एक सवाल है. क्योंकि इसके पहले भी कई योजनाएं बनी, लेकिन जमीन पर नहीं उतरी. इधर, निर्णय लिया गया है कि झारखंड की बंद पड़ी कोयला खदानों को पर्यटन स्थल के रूप में डेवलप किया जाएगा. 

झारखंड में तीन कंपनियां कर रही काम 

बता दें कि झारखंड में कोल इंडिया की तीन कोयला कंपनियों काम करती हैं. इनमें बीसीसीएल ,सीसीएल और ईसीएल की खदान शामिल हैं. इन तीनों कोयला कंपनियों के पास कई भूमिगत खदानें हैं. जो बंद पड़ी हुई है. कोयला निकालने में इनका उपयोग नहीं हो रहा है. प्रारंभिक तौर पर झारखंड सरकार और सीसीएल इस दिशा में काम करेंगे. इस पहल से पर्यटकों को कोयला खदानों, खनन तकनीक और औद्योगिक प्रक्रियाओं की झलक देखने को मिल सकती है. पहले चरण में सीसीएल के साथ इकरारनामा किया जा रहा है. वैसे भी बंद कोयला खदानों के भीतर अभी भी बड़ी मात्रा में कोयला है. लेकिन अब कोयला कंपनियों को कोयला निकालने में बहुत इंटरेस्ट नहीं है. जब से आउटसोर्सिंग कंपनियों का प्रचलन बढ़ा है. 

कोल इंडिया की सभी सहायक कम्पनिया आउटसोर्स के भरोसे 

कोल इंडिया की प्राय सभी सहायक कंपनियां आउटसोर्सिंग के भरोसे चल रही है. यह आउटसोर्सिंग कंपनियां मूल कंपनी की निगरानी में काम करती हैं. लेकिन इन कंपनियों को लेकर भी लगातार सवाल खड़े किए जाते हैं. बड़ा सवाल उठाया जाता है कि आउटसोर्सिंग कंपनियों का कभी सुरक्षा ऑडिट नहीं किया जाता. आउटसोर्सिंग कंपनियां एनआईटी की शर्तों का उल्लंघन करती है, बावजूद कभी एक्शन नहीं लिया जाता है. कोयला खनन भी बेतरतीब ढंग से किया जाता है. क्योंकि उनको एक निश्चित समय के लिए टेंडर मिलता है. वह निर्धारित समय में जैसे -तैसे कोयला का खनन करती हैं. खैर अगर राज्य सरकार इन परित्यक्त भूमिगत खदानों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की पहल की शुरुआत की है, तो यह स्वागत योग्य कहा जाएगा. 

कोयलांचल में विस्थापन एक बड़ी समस्या है 

कोयलांचल की बात की जाए, तो फिलहाल विस्थापन एक बड़ी समस्या है. विस्थापन के लिए मास्टर प्लान के बाद संशोधित मास्टर प्लान की मंजूरी भी मिल गई है. अब देखना होगा आगे -आगे होता है क्या. झारखंड के मुख्य सचिव ने भी संशोधित मास्टर प्लान की मंजूरी के बाद कोयला क्षेत्र का दौरा किया है. फिलहाल सरकार विस्थापित लोगों को रोजगार से जोड़ने पर फोकस कर रही है. भूमिगत आग के बीच जीवन यापन करने वाले लोगों का कहना है कि उन्हें सुरक्षित स्थान जाने को तैयार हैं, लेकिन रोजगार एक बड़ी समस्या है. मूलभूत सुविधाएं भी चाहिए. देखना है कि परित्यक्त भूमिगत खदान ने का उपयोग अब पर्यटन स्थल के रूप में ही होगा या फिर कोयला उत्पादन की भी कोई योजना नए ढंग से बनाई जाएगी.

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो