Ranchi-प्रधानमंत्री मोदी की वाराणसी यात्रा से ठीक पहले सीएम नीतीश की रैली को अनुमति देने से इंकार करने पर जदयू ने पीएम मोदी और सीएम योगी के खिलाफ सियासी मोर्चा खोल दिया है. योगी प्रशासन के इस कार्रवाई को पुलसिया दमन की संज्ञा देते हुए झारखंड प्रदेश प्रवक्ता सागर कुमार ने दावा किया है कि पीएम मोदी और योगी में सीएम नीतीश का आंतक सिर चढ़ कर बोलने लगा है. दोनों को  इस बात का डर है कि जैसे ही सीएम नीतीश की इंट्री होगी, यूपी का सियासी समीकरण नयी करवटें लेने लगेगा और इसी हताशा में स्थानीय प्रशासन पर रैली की अनुमति नहीं देने के लिए दवाब बनाया गया.

योगी के इशारे पर जगतपुर इंटर कॉलेज प्रबंधन ने बदला अपना फैसला

सागर ने यह दावा भी किया कि पहले इसी जगतपुर इंटर कॉलेज प्रबंधन के द्वारा सभा की अनुमति प्रदान कर दी गयी थी, लेकिन जैसे ही जिला प्रशासन के माध्यम से सीएम योगी को इस बात की खबर लगी कि पीएम मोदी की वाराणसी यात्रा से ठीक पहले सीएम नीतीश की इंट्री होने वाली है, उनके सामने खतरा मंडराने लगा, उन्हे इस बात की भनक लग गयी कि सीएम नीतीश की इंट्री के साथ ही सियासी माहौल बिगड़ सकता है. जिसके बाद आनन-फानन में जिला प्रशासन पर अनुमति को रद्द करवाने का दवाब बनाया गया, सीएम योगी के आदेश के बाद जिला प्रशासन ने जगतपुर इंटर कॉलेज प्रबंधन पर अनुमति वापस लेने या बुलडोजर का सामना करने का फरमान सुना दिया. इस हालत में जिला प्रशासन के समक्ष कोई विकल्प नहीं बचा.  सागर ने कहा कि सीएम योगी और मोदी को यह नहीं भूलना चाहिए कि वाराणसी की जनता के बीच सीएम नीतीश का असीम प्यार है, और योगी सरकार के इस फैसले के कारण स्थानीय लोगों में आक्रोश पनप रहा है, जिसका परिणाम 2024 के महाजंग सामने आयेगा.

सीएम नीतीश का फूलपुर से चुनाव लड़ने की चर्चा तेज

यहां ध्यान रहे कि हाल के दिनों  में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि सीएम नीतीश इस बार वाराणसी से सटे फूलपुर संसदीय सीट से इंडिया गठबंधन का उम्मीदवार बन सकते हैं, पूर्वोत्तर यूपी के इस इलाके में कुर्मी मतों की बहुलता मानी जाती है, वाराणसी सहित पूरे पूर्वोत्तर में कुर्मी मतदाता ही सियासी दलों की किस्मत पर अंतिम मुहर लगाते हैं, माना जाता है कि सीएम नीतीश की इंट्री से पूर्वोतर का सियासी रंग बदल सकता है, और इसके साथ ही सीएम नीतीश की इंट्री से अखिलेश यादव को भी कुर्मी मतदाताओं को साधने में मदद मिल सकती है, और इसके साथ ही बिहार की तर्ज पर यूपी में जातीय जनगणना और पिछड़ों के आरक्षण विस्तार का मुद्दा गरमा सकता है, जिसकी अंतिम परिणति भाजपा को सियासी हार के रुप में चुकाना पड़ सकता है.  

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