गया (GAYA ) - 20 सितम्बर से पितृपक्ष की शुरुआत हो गयी है.गया में पितृपक्ष मेले का लगातार दो बार से आयोजन नहीं किया जा रहा है.कोरोना के प्रकोप से बचाव के लिए जिला प्रशासन भी अलर्ट हो चूका है. गया फल्गु नदी में पूर्णिमा श्राद्ध की तर्पण सोमवार से शुरू हो गयी है. 20 सितम्बर से शुरू होने वाला श्राद्ध पक्ष अगले महीने के 6 अक्टूबर तक चलेगा.पितृपक्ष की शुरुआत होते ही गया में श्रद्धालुओं का आना शुरू हो चूका है.पुनपुन नदी में श्राद्ध प्रक्रिया की शुरुआत हो गयी है.गया के बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या एक लाख से अधिक होने की संभावना जताई जा रही है.गया में अधिक भीड़ होने से जिला प्रशाशन को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.राज्य सरकार ने राजकीय पितृपक्ष मेला को भी स्थगित कर दिया है.जिला प्रशासन ने पिंडदान करने वाले श्रद्धालुओं के लिए दिशा निर्देश जारी किया है.
ये हैं जारी किये गए निर्देश
-- पिंडदान करने वालों के लिए विशेष सुविधा नहीं मुहैया कराई जाएगी.
-- बड़े समूह में पिंडदान करने आने वालों को भी स्पष्ट मना किया गया है.
-- कोरोना के कारण कोई भी राजकीय कार्यक्रम नहीं आयोजित किये जायेंगे.
-- कोरोना गाइडलाइन्स से जुड़े सम्बंधित दिशा निर्देशों के तहत ही लोग पिंडदान कर सकते हैं.
गया रेलवे स्टेशन पर की दी गयी सुविधा ये है
रेलवे स्टशन पर आते ही पुलिस कैंप,जिला प्रशासन कैंप ,पंडा समाज कैंप से संपर्क कर जानकारी लिया जा सकता है.
विष्णुपद मंदिर के संवाद सदन में भी तीर्थयात्रियों के लिए एक कण्ट्रोल रूम बनाया गया है.
अपने क्षेत्र के पंडा से तीर्थयात्री खुद कर सकते हैं संपर्क.
तीर्थ यात्रियों के लिए जिला प्रशाशन के द्वारा कण्ट्रोल रूम का भी नंबर दिया गया है :06312222253,2222259
*क्यों मनाते हैं पितृपक्ष *
आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष के सभी 15 दिनों का अपना अलग महत्व है. हिन्दू धर्म के मुताबिक इसे पितृपक्ष के रूप में मनाया जाता है.पितृपक्ष में श्रद्धालु के द्वारा अपने पूर्वजों को पिंडदान किया जाता है.सभी अपने पूर्वजों को तर्पण देने के लिए गया जाते हैं.पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है.श्राद्ध पक्ष में श्रद्धालु अपने घरों से भी पूर्वजों का तर्पण करते हैं.मान्यता है कि अपने परिवार के मृत पूर्वजों को श्रद्धा से याद करना ही श्राद्ध कहलाता है.श्राद्ध पक्ष में पितरों को भोजन दान भी करते हैं. जल के साथ तिल से उन्हें तर्पण देने की परंपरा है. इन सभी कार्यों से पितर खुश होकर आशीर्वाद देते हैं.
रिपोर्ट : रंजना कुमारी (रांची ब्यूरो )
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