टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : झारखंड में गोवंश हत्या प्रतिषेध अधिनियम को लागू हुए दो दशक बीत चुके हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इससे बिल्कुल उलट है. पशु तस्करी का नेटवर्क लगातार फल-फूल रहा है, और पाकुड़ जिले के हिरणपुर प्रखंड को इस अवैध कारोबार का केंद्र माना जा रहा है.

पशु तस्करों के लिए 'सेफ जोन' बना हिरणपुर

पश्चिम बंगाल सीमा से सटी हुई तस्करों के लिए वरदान बन गई है. यहां से बंगाल में पशुओं को दिन के उजाले में कहिये या फिर रात के अंधेरे में पार करवा दिया जाता है. प्रशासन समय-समय पर कार्रवाई जरूर करता है, लेकिन तस्करी की रफ्तार कम होने का नाम नहीं ले रही.

बिहार, बंगाल और झारखंड के तस्करों का मजबूत नेटवर्क

स्थानीय सूत्रों और अधिकारियों की मानें तो यह काम अब सिर्फ स्थानीय स्तर तक सीमित नहीं है. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के तस्कर एक संगठित सिंडिकेट के रूप में काम कर रहे हैं. रात के समय हाईवे और ग्रामीण रास्तों से गोवंश की तस्करी बड़े स्तर पर की जाती है.

कानून मौजूद, पर अमल लाचार

झारखंड सरकार ने 22 नवंबर 2005 को गोवंश हत्या प्रतिषेध अधिनियम पारित किया था. इसके तहत गाय और बैल को राज्य से बाहर ले जाना कानूनन अपराध है. इसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी SPCA (Society for Prevention of Cruelty to Animals) निरीक्षकों को सौंपी गई है. उन्हें एफआईआर दर्ज कराने के लिए थानों पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं है. फिर भी, तस्करी पर प्रभावी रोक नहीं लग पाई है.

पशुओं के साथ क्रूरता चरम पर

तस्करी के दौरान पशुओं को अमानवीय हालात में लादा जाता है–बिना चारे, पानी और हवा के. कानून कहता है कि ऐसे मामलों में अभियोजन की कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन ज़मीनी स्तर पर न तो रोकथाम दिखती है, न ही न्यायिक सख़्ती.

अब बड़ा सवाल–कब जागेगा प्रशासन?

जब एक संगठित रैकेट खुलेआम पशु तस्करी को अंजाम दे रहा हो और सीमावर्ती इलाके तस्करों का सुरक्षित ठिकाना बन गए हों, तो सवाल उठता है– क्यों नहीं हो रही है लगातार निगरानी? क्यों नहीं हो रहा है कड़ी कानूनी कार्रवाई?

अब जरूरत है कि जिला प्रशासन, सीमा सुरक्षा बल और राज्य सरकार मिलकर इस अवैध व्यापार पर लगाम लगाएं, वरना कानून महज़ कागज़ों में ही रह जाएगा और पशुओं पर क्रूरता का यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा.

रिपोर्ट-नंद किशोर मंडल