टीएनपी डेस्क(TNP DESK):हिंदू धर्म में कई प्राचीन परंपराएं हैं जो आज भी लोग फॉलो करते हैं. वहीं बात है अगर मिथिलांचल की हो तो फिर वहां की संस्कृति काफी समृद्ध है.जहां आज भी लोग अपनी परंपरा को पूरे विधि विधान के साथ निभाते हैं.मिथिलांचल की शादी की रस्मे पूरे विश्व में काफी ज्यादा है क्योंकि प्रभु श्री राम का ससुराल भी मिथिलांचल में है, जहां माता सीता का मायका माना जाता है.

अग्निपरीक्षा से कम नहीं है मिथिलांचल का ये पर्व

किसी भी धर्म समाज में शादी एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. जिसमें लोग अपनी पूरी मेहनत की कमाई तो लगाते ही हैं वही कई विधि विधान भी होती है, जिसको निभाना काफी ज्यादा जरूरी होता है. वहीं कुछ परंपरा अनोखी होती है, जिसे सुनकर या देखकर लोग हैरान हो जाते हैं. आज हम मिथिला की एक ऐसी ही परंपरा के बारे में बतानेवाले हैं जहां शादी के पहले साल नयी दुल्हन को जलती बाती  से घुटनो और पैरों को दागा जाता है.

पढ़ें क्या है इस पर्व का महत्व

मिथिलांचल की इस खास परंपरा को मधुश्रावणी के नाम से जाना जाता है. मधुश्रावणी मिथिला का एक महत्तवपूर्ण रीति रिवाज है, जो एक विशेष स्थान रखता है. मधुश्रावणी के लिए विशेष रूप से चुने जाने वाले फूल पत्तियों के बीच कांटा की चुभन को दर्शाता है.जो विवाह के बाद जीवन में आनेवाली विध्न बधाओं का दर्शाता है.जिसमे जलती बाती से घुटने से दोनों पांव के ऊपर भाग को दागा जाता है.

पढ़ें कौन लोग मना सकते है ये पर्व

मधुश्रावणी का पर्व उन परिवारों में मनाया जाता है, जिनके परिवार में बेटी की शादी हुई होती है यह त्योहार नवविवाहिता मनाती है, जिनकी शादी के एक साल पूरे नहीं हुआ रहता है. ये पर्व 14 दिनों तक नियम निष्ठा के साथ मनाया जाता है.पर्व के आखिरी दिन विवाहित महिलाओं को अग्नि परीक्षा जैसी नियम से गुजरना पड़ता है. जहां दागने के दौरान घुटनों पर पान का पत्ता रखा जाता है. जहां दागा जाता है वहां पान के पत्ते में छेद कर दिया जाता है उसकी जगह पर दागा जाता है.इस दौरान पति पान के पत्ता से महिला की आंख बंद कर रखता है उसके बाद दागने की प्रक्रिया खत्म होती है.

पढ़ें क्या है दागने के पीछे का तर्क

चलिए जान लेते हैं कि आखिर महिलाओं को दागने के पीछे क्या तर्क हो सकता है. मिथिला में इसको लेकर एक मान्यता है कि ऐसा करने से घुटनों और पैरों  पर जो फफोले आते हैं  वह पति पत्नी के बीच के प्यार को दर्शाता है कहा जाता है कि जितने बड़े फफोले आते हैं उतना ही ज्यादा पति पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है.वहीं यदि कोई महिला गर्भवती होती है, तो उसके साथ ये नियम नहीं किया जाता है.

पढ़ें व्रत में किसकी पूजा होती है

आखिर मधुश्रावणी होता क्या है तो आपको बताये कि 14 दिन तक चलने वाले इस व्रत को लेकर कई नियम है. जहां महिलाएं अपने मायके में ही रहकर ये व्रत करती हैं. 14 दिन तक चलने वाले पर्व के दौरान नमक का सेवन नहीं करना होता हैं. नाग पंचमी से शुरू होने वाले इस पूजा में भगवान महादेव, माता पार्वती और नाग देवता की पूजा की जाती है.वही सजी हुई डाली के फूलों से भगवान शिव माता गौरी और नाग देवता की जाती है.इस पूजा को संपन्न कराने के लिए परिवार की सबसे वरिष्ठ महिला जिसे विधकरी कहा जाता है. जो 14 दिनों तक भगवान शिव माता पार्वती की कहानियां सुनाती हैं.

सबसे पहले माता पार्वती ने रखा था व्रत

मिथिलांचल में ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती ने सर्वप्रथम मधुश्रावणी व्रत रखा था. जन्म जन्मांतर तक शिव को अपने पति रूप में रखने के लिए इस पर्व में पार्वती की कथा आज भी सुनाई जाती है. जिसमे पहले दिन मौन पंचमी कथा का वर्णन सुनाया जाता है.दूसरे दिन की कथा में बिहुला एवं मनसा का कथा विषहरा का कथा एवं मंगला गौरी का कथा सुनाया जाता है. तीसरो दिन पृथ्वी का जन्म एवं समुद्र मंथन का कथा, चौथे दिन माता सती की कथा,पांचवें दिन महादेव की पारिवारिक कथा,छठे दिन गंगा का कथा, गौरी का जन्म एवं कामदहन की कथा, सातवें दिन माता गौरी की तपस्या की कथा,आठवें दिन गौरी के विवाह की कथा,नौवे दिन मैना का मोह एवं गौरी के विवाह कथा दसवें दिन कार्तिक एवं गणेश भगवान के जन्म की कथा,11वे दिन विवाह की कथा,12वें दिन बाल बसंत एवं गोसावन का कथा,13 वें दिन श्रीकर राजा के कथा सुनायी जाती है.