दुमका (DUMKA) : जब हमारा देश ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था तो माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा शीर्षक से एक कविता लिखी थी. देश भक्ति की भावना से ओत प्रोत इस कविता में कवि ने लिखा "मुझे तोड़ लेना वन माली, उस पथ पर देना तुम फेंक. मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक". कवि ने इस कविता के माध्यम से पुष्प यानी फूल को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ कर देश भक्ति का ऐसा अलख जगाया कि आखिरकार 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हो गया.

शिवलिंगी फूल है भोलेनाथ का अतिप्रिय

भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है और विविधता हर क्षेत्र में देखने को मिलती है. तो हम बात कर रहे थे फूल की और भारत में फूल की कई प्रजातियां देखने को मिलती है. फूल देवी देवताओं के प्रिय माने जाते है और हर फूल किसी न किसी देवी देवता के अति प्रिय माने जाते है. आज हम जिस फूल की बात कर रहे है वह देवाधिदेव महादेव को अति प्रिय माना जाता है. उस फूल का नाम है शिवलिंगी फूल.

शिवलिंगी फूल की बनावट ही इसे बनाता है खास, खिलता है सावन में

इस फूल की बनावट ही इसे बेहद खास बनाता है और इसकी नाम की सार्थकता को साबित करता है. इसकी बनावट नाग के फन की तरह होता है और मुख के अंदर जिह्वा पर साक्षात् शिवलिंग की आकृति उभरी रहती है. अब आप समझ सकते है कि जिसके अंदर खुद शिव का वास हो तो वह देवाधिदेव महादेव को कितना प्रिय होगा.

दुर्लभ है शिवलिंगी पेड़, 12 वर्षों बाद खिलता है फूल

बासुकीनाथ धाम के तीर्थ पुरोहित सदाशिव बाबा बताते है कि शिवलिंगी फूल बाबा का प्यारा फूल है और दुर्लभ भी है. इस फूल का विशाल पेड़ होता है और 12 वर्ष बाद ही पेड़ में फूल लगता है. दुर्लभ होने के बाबजूद दुमका के बासुकिनाथ मंदिर से सटे दारूक वन में शिवलिंगी फूल के कई पेड़ हैं. सावन भादो के महीने में जब शिवलिंगी फूल खिलता है तो दारूक वन की सुंदरता देखते ही बनता है.

बासुकीनाथ मंदिर से सटा है दारुक वन, जहां है शिवलिंगी के कई पेड़

पंडा धर्मरक्षणी सभा के अध्यक्ष मनोज पंडा बताते है कि शिवलिंग पर शिवलिंगी का पुष्प अर्पित करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. बासुकीनाथ मंदिर से सटे जिस दारुक वन में शिवलिंगी के कई पेड़ है उस दारूक वन का वर्णन शिव पुरान में भी मिलता है. किंवदंती यह भी है कि दारूक और दारूका नामक राक्षस और राक्षसी का निवास स्थल दारूक वन रहा है. राक्षसी होने के बाबजूद दारुका मां पार्वती की अनन्य भक्त थी. पूजा अर्चना में पुष्प की कमी न हो इसके लिए उसे वरदान प्राप्त था कि वह अपने साथ वन लेकर विचरण करती थी. मनोज पंडा बताते है कि दारुक वन का विस्तार 16 जोजन तक था. समय के साथ दारुक वन का अवशेष बासुकिनाथ मंदिर के बगल में देखने को मिलता है. सबसे बड़ी बात दारूक का अपभ्रंश ही वर्तमान समय में दुमका है.

धार्मिक और पौराणिक महत्व होने के बाबजूद नहीं है दारूक वन का कोई बोर्ड, विचार करना होगा वन विभाग को

समय के साथ बासुकिनाथ धाम की प्रसिद्धि देश विदेश तक फैलती गई. यही वजह है कि सावन के महीने में देश विदेश से शिव भक्त यहां आते है.  बासुकीनाथ धाम का संबंध दारुक वन से है और दारुक वन का वर्णन हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है. वर्तमान समय में बासुकीनाथ मंदिर से सटे जिस वन क्षेत्र को दारूक वन कहा जाता है वहां ढूंढने से भी दारुक वन का एक भी बोर्ड नहीं मिलता है. वर्तमान समय में यह वन विभाग के अधीन है. वन विभाग द्वारा परिसर में एक गेस्ट हाउस भी बनाया गया है जिसे बासुकीनाथ वन विश्रामागार कहा जाता है और इस नाम का बोर्ड भी लगा है. दारुक वन की मूल आत्मा समाप्त न हो इसका प्रयास भी वन विभाग और जिला प्रशासन को करनी चाहिए क्योंकि धार्मिक और पौराणिक महत्व होने के बाबजूद वन क्षेत्र में कहीं भी दारुक वन का का एक बोर्ड भी नहीं होना अच्छा नहीं लगता है.

रिपोर्ट-पंचम झा