रांची(RANCHI): झारखण्ड अपने आप में सबसे अलग है. कुदरत ने सबसे पहले झारखण्ड को वह सब कुछ दिया जिससे देश में अलग पहचान मिली. लेकिन यहाँ के अधिकारी उससे भी आगे है. सरकारी दफ्तर में बैठने के बाद खुद को किसी राजा के कम नहीं समझते है. लोकतंत्र में राजतंत्र जैसा व्यवहार गरीब जनता के साथ करते है. अब एक ऐसी लापरवाही की तस्वीर पलामू से सामने आई है. यहां एक 60 साल के बुजुर्ग की उम्र सरकारी रिकॉर्ड में 617 साल कर दिया. इतना तो ठीक था गलती हुई होगी. लकिन सालों से जब वृद्ध सरकारी दफ्तर का चक्कर लगा रहा है तब भी उसे कोई उम्मीद की किरण नहीं दिख रही है. इलाज के लिए आयुष्मान कार्ड बनाने पहुंचे तो उम्र ज्यादा बता दिया. इसके बाद जब उम्र को सुधरवाने के लिए सरकारी दफ्तर फिर पहुंचे तो वहां किसी ने नहीं सुना अब थक हार कर बैठ गए.

दरअसल मामला पलामू के हैदरनगर का है. यहां हैदरनगर पश्चिमी पंचायत के रहने वाले गुलाम खान की उम्र सरकारी आकड़े में 617 साल दर्ज कर ली गयी. इसके बाद अब इसे सही कराने के लिए अंचल से लेकर जिला तक आवेदन दिया तो किसी ने इनकी नहीं सुनी और उन्हें ही इसके लिए जिम्मेवार बता दिया. गुलाम खान अपने इलाज के लिए आयुष्मान कार्ड बनवाना चाह रहे थे. लेकिन उम्र उनके सभी काम में रोड़ा बन रही है. गलती सरकारी बाबू ने किया और इसका अंजाम गरीब को भुगतना पड़ रहा है.

गुलाम खान के राशन कार्ड में उम्र 617 साल लिखी गयी है. पहले कोई इसे सुनेगा तो मज़ाक समझेगा. लेकिन गुलाम खान के साथ यह मज़ाक अधिकारियो ने कर दिया है,. जिसके लिए वह दर दर भटक रहे हैं.सोच रहे है कि आखिर अब किसके पास जाएं. 'द न्यूज़ पोस्ट' को गुलाम खान ने बताया कि उन्होंने 2020 में  बनवाया. सभी परिवार के लोगों का नाम और उम्र सही थी लेकिन उनके उम्र में 612 किया गया और 2025 में राशन कार्ड के हिसाब से उनकी उम्र 617 साल हो गयी.अधिकारियो की गलती के वजह से उनका कोई काम नहीं हो रहा है. सभी एक दूसरे पर टाल रहे है.

उन्होंने बताया कि उनकी उम्र इतना ज्यादा दर्ज कर अधिकारीयों ने उनका मज़ाक बनाया है, आखिर यह सोचने वाली बात है कि इतना उम्र किसी की कैसे हो सकती है. इसके बावजूद सरकारी कर्मियों के अफसरसाही और चूक का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है. उन्होंने जिले के उपायुक्त से अब गुहार लगाई है कि उनके राशन कार्ड में उम्र सही कर दिया जाए, जिससे उनका आयुष्मान कार्ड बन सके और वह अपना इलाज करा पाएं.

अब ऐसे में सवाल है कि आखिर चूक किसकी है. देखें तो निचले कम्प्यूटर ऑपरेटर ने गलती की इंट्री के समय ध्यान नहीं दिया. इसके बाद BSO यानी प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी को इसे चेक कर आगे बढ़ाना होता है जिसके बाद यह जिला आपूर्ति पदाधिकारी तक पहुँचता है. ऐसे में तीन से चार बार चेक करने के बावजूद इसे सुधार नहीं किया गया. अब इसके पीछे की वजह समझेंगे तो यह भी साफ़ हो जायेगा. क्योकि अधिकतर प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी खुद अपने लॉगइन आईडी नहीं चलाते है. यह हाल सिर्फ हैदरनगर का नहीं है. सभी जगह पर किसी किसी प्रज्ञा केंद्र या अन्य निजी ऑनलाइन सेंटर में चलता है. जिससे संचालक ऑनलाइन करने के बाद बिना जाँच किये उसे आगे बढ़ा देता है. इसी वजह से ज्यादा गलती मिलना आम बात हो गई.